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भगवान का भजन करने पर भी लोगों में निर्मलता क्यों नहीं आती?

भगवान का भजन करने पर भी लोगों में निर्मलता क्यों नहीं आती?


नन्द किशोर कौशल 8168038822

यह बात बिलकुल सही है कि हरि-भजन करने से, हरि-नाम करने से व्यक्ति का चित्त निर्मल होता है, उसका आत्म-बल बढ़ता है, उसको अपने जीवन में सन्तुष्टि का अनुभव होता है, उसका प्रभाव बढ़ता है, उसका सांसारिक मोह खत्म हो जाता है।
यही नहीं हरिभजन करने से उसका जीवन प्रसन्नता से भर जाता है, उसे अपने जीवन की हरेक घटना पर भगवान की कृपा का अनुभव होता है।
परन्तु
हरिभजन सही रूप में, सही दिशा में, सही "आनुगत्य" में व सही उद्देश्य से होना चाहिये।

1) उसको संसारिक घमण्ड नहीं होना चाहिये। उसे इस सही भावना में रहना होगा कि वो भगवान श्रीकृष्ण के दासों का दास है।

2) भक्तों के जीवन चरित्र को याद करते हुए अपने व्यवहार में सहनशीलता बढ़ानी होगी।

3) अपने मान-सम्मान के लिये दिल में पागलपन नहीं होना चाहिये। हमारे जीवन में हमसे जो भी अच्छा हो उसका सारा श्रेय तह दिल से गुरुजी, वैष्णव व भगवान को देना चाहिये।

4) सभी से सम्मानजनक व्यवहार करना चाहिये। और जहाँ तक बात है भक्तों की हमें पता होना चाहिये कि कौन कनिष्ठ भक्त है, कौन मध्यम और कौन उत्तम, उसके अनुसार उनका सम्मान व सेवा करनी चाहिये।

सही दिशा का अर्थ है कि यदि हम कुछ इच्छायें लेकर भगवान का भजन कर रहे हैं तो हमें सकाम भाव से निष्काम भाव की ओर और निष्काम भाव से उनके प्रेम मार्ग की ओर अग्रसर होना चाहिये।

सही आनुगत्य का तात्पर्य है कि हमें एक ऐसे भक्त के दिशा-निर्देशानुसार हरि-भजन करना होगा जिसके बारे में परम् वैष्णव भक्ति सिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी ठाकुर प्रभुपाद जी ने कहा --

कनक कामिनी, प्रतिष्ठा-बाघिनी,
छाड़ि  आछे यारे, सेई तो वैष्णव।
सेई  अनासक्त, सेई  शुद्ध  भक्त,
संसार   तथाये,  पाये     पराभव।

"हमें ऐसे भक्त का अनुभव करना चाहिये जिसके अन्दर दुनियावी धन-दौलत का कोई लोभ न हो तथा सांसारिक भोगों की वासना व प्रतिष्ठा की इच्छा जिसे दूर-दूर तक भी छूती न हो। साथ ही जिनका हृदय जीवों के प्रति दया-भाव और श्रीकृष्ण-प्रेम से भरा हो।"

सही उद्देश्य - हमें भगवान की इच्छा के अनुकूल, भक्ति अंगों का पालन करना चाहिये। समझने के लिए कंस भी भगवान का स्मरण करता है और प्रह्लाद भी, पूतना भी दूध पिलाती हैं और माता यशोदा भी।
श्रीचैतन्य महाप्रभुजी के एक और भक्त श्रीनाथ चक्रवर्ती जी कहते हैं कि हमें गोपियों वाली स्थिति को प्राप्त करने के लिये चेष्टा करनी चाहिये।

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