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झारखंड में झामुमो, झाविमो और राजद का होगा महागठबंधन

झारखंड में झामुमो, झाविमो और राजद का होगा महागठबंधन

झारखंड में झामुमो, झाविमो और राजद का होगा महागठबंधन ।

झारखण्ड में एक नया सियासी समीकरण बन रहा है। बिहार की तर्ज पर यहां भी विपक्ष का महागठबंधन आकार ले रहा है। अभी तक जितनी सियासी तस्वीर बनी है उसके अनुसार झारखण्ड मुक्ति मोर्चा, झारखण्ड विकास मोर्चा और राष्ट्रीय जनता दल मिलकर महागठबंधन बना रहे हैं। हेमंत इस महागठबंधन के नेता होंगे। कांग्रेस बाद में इस महागठबंधन का हिस्सा बनेगी ही। आजसू से भी बात चल रही है। धनबाद में प्रभावी MCC जैसे छोटे दलों को भी इस सियासी टोले में जगह मिलेगी। ऐसे में सत्ताधारी एनडीए के खिलाफ एक ताकतवर विकल्प जनता के सामने होगा। अभी इस महागठबंधन का औपचारिक एलान होना बाकी है, लेकिन एक-एक सीट को लेकर विपक्षी दलों की माथापच्ची जारी है।

पहले इस महागठबंधन का सबसे बड़ा पेंच इसके नेता पद को लेकर था। बाबूलाल मरांडी का झाविमो हेमंत को नेता मानने के लिए तैयार नहीं था। अगर नीतीश कुमार ने बिहार में एनडीए के साथ रिश्ता नहीं जोड़ा होता तो बाबूलाल उनकी जेडीयू और राजद के साथ मिलकर मोर्चा बनाते और फिर झामुमो के साथ सीट शेयरिंग पर बात होती। तब शायद विपक्षी गठबंधन का स्वरुप भिन्न होता। लेकिन नीतीश के सियासी पलटी मारते ही झारखण्ड में भी सियासी तस्वीर पलट गई और राजनीतिक सच्चाई को समझ कर झाविमो भी हेमंत के नेतृत्व को मानने के लिए तैयार हो गया है।

देर-सबेर कांग्रेस भी इस महागठबंधन का हिस्सा बनेगी ही। कांग्रेस नेतृत्व के सामने और उपाय ही क्या है। झारखण्ड में जिस तेज़ी से कांग्रेस का जनाधार घटा है, उसमे इसके अकेले चलने की कोई सूरत नहीं बची है। कांग्रेस के नव नियुक्त झारखण्ड प्रभारी अभी संगठन को मजबूत करने की बात कर कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उन्हें भी पता है कि कांग्रेस अपना जनाधार खो चुकी है, ऐसे में गठबंधन के सहारे ही सत्ता का रास्ता पाया जा सकता है।

आजसू से भी विपक्षी नेता बात कर रहे हैं। आजसू लगातार रघुवर सरकार पर हमलावर रहा है। सुदेश महतो अपने कोर ग्रुप में लगातार यह बात कर रहे हैं कि वह सरकार का पाप लेकर चुनाव में नहीं जायेंगे। वह 2018 में एनडीए से अलग होंगे। ऐसे में वो उनके सामने दो ही विकल्प है, या तो एकला चलें या फिर महागठबंधन से जुड़ जायें। इस हालत में सुदेश माप तौल कर रहे हैं। उन्हें हेमंत के नेतृत्व से कोई दिक्कत नहीं है, पर कुछ सीटों को लेकर दिक्कत हो सकती है। ऐसे में तमाम राजनीतिक मतभेद भुलाकर अगर सुदेश भी महागठबंधन के देर-सबेर हिस्सा बन जायें तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।

महागठबंधन एक बड़े प्रभावी समीकरण के साथ चुनाव में जायेगा। तब मांझी (आदिवासी), मुस्लिम और महतो के साथ- साथ यादव वोटों की बड़ी जुगलबंदी होगी जो तक़रीबन 70 फीसदी वोटों का नया समीकरण रच देगी। ऐसी स्थिति में झारखण्ड बहुमत का नया इतिहास लिख सकता है।

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