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पितृपक्ष  तर्पण का महत्व:  पितृ तीर्थ मुद्रा में कैसे करें तर्पण

पितृपक्ष तर्पण का महत्व: पितृ तीर्थ मुद्रा में कैसे करें तर्पण

नन्द किशोर कौशल
ज्योतिष लेखक, ज्योतिष

इस बार 2017 में महालय, यानी पितृपक्ष की शुरूआत 6 सितम्बर से होकर 20
सितम्बर को आश्विन मास के कृष्ण पक्ष को ही पितृपक्ष समझा जाता
है। वास्तविकता में पितृपक्ष की शुरूआत आश्विन कृष्ण पक्ष की शुरूआत के
एक दिन पहले, यानी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से ही हो जाती
है। इस तरह सभी स्थितियां सामान्य होने पर यह पक्ष सोलह दिन का होता है,
लेकिन ऐसा क्यों होता है?
पितृपक्ष में पितरों का श्राद्ध उसी तिथि को किया जाता है, जिस तिथि को
उनका स्वर्गवास हुआ हो। कृष्ण पक्ष में केवल प्रतिपदा से अमावस्या तक की
तिथियां होती हैं तो अगर किसी का स्वर्गवास पूर्णिमा के दिन हुआ हो, तो
उसका श्राद्ध कब करेंगे। इस समस्या के निवारण के लिये ही भाद्रपद मास के
शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से महालय, यानी पितृपक्ष की शुरूआत का प्रावधान
किया गया है।

💫परिचय💫

हिन्दू धर्म में पितृपक्ष का बहुत अधिक महत्व है। हिन्दू-धर्म के अनुसार
मृत्यु के बाद जीवात्मा को उसके कर्मानुसार स्वर्ग-नरक में स्थान मिलता
है। पाप पुण्य क्षीर्ण होने पर वह पुनः मृत्यु लोक में आ जाती है। मृत्यु
के पश्चात पितृयान मार्ग से पितृलोक में होती हुई चन्द्रलोक जाती है।
चन्द्रलोक में अमृतान्त का सेवन करके निर्वाह करती है। यह अमृतान्त कृष्ण
पक्ष में चन्द्रकलाओं के साथ क्षीर्ण पड़ने लगता है। अतः कृष्ण पक्ष मे
वंशजों को आहार पहुंचाने की व्यवस्था की गई है। श्राद्ध एवं पिण्डदान के
माध्यम से पूर्वजों को आहार पहुंचाया जाता है। शास्त्रों में बताया गया
है कि पितृपक्ष में पितृतर्पण अवश्य करना चाहिए।
कुर्वीत समये श्राद्धं कुले कश्चिन्न सीदति।
आयुः पुत्रान्यशः स्वर्गंकीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम्।।
पशून् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात्।
देवकार्यादपि सदा पितृकार्यं विशिष्यते।।
देवताभ्यः पितृणां हिपूर्वमाप्यायनं शुभम्।। -गरूड़ पुराण
(समयानुसार श्राद्ध करने से कुल में कोई दुःखी नहीं रहता। पितरों की
पूजा करके मनुष्य आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, श्री,
पशु, सुख और धन-धान्य प्राप्त करता है। देवकार्य से भी पितृकार्य का
विशेष महत्व है।

💫तर्पण का महत्व💫

ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार जिस प्रकार वर्षा का जल सीप में गिरने से
मोती, कदली में गिरने से कपूर, खेत में गिरने से अन्न और धूल में गिरने
से कीचड़ बन जाता है। उसी प्रकार तर्पण के जल से सूक्ष्म वाष्पकण देव योनि
के पितर को अमृत, मनुष्य योनि के पितर को चारा व अन्य योनियों के पितरों
को उनके अनुरूप भोजन व सन्तुष्टि प्रदान करते हैं। शास्त्रानुसार कृष्ण
पक्ष पितृ पूजन व शुक्ल पक्ष देव पूजन के लिए उत्तम है।

💫तर्पण कर्म के प्रकार💫

ये 6 प्रकार के होते हैं।
(1) देव-तर्पण (2) ऋषि तर्पण (3) दिव्य मानव तर्पण (4) दिव्य पितृ-तर्पण
(5) यम तर्पण (6) मनुष्य-पितृ तर्पण।

💫पितृ तीर्थ मुद्रा में कैसे करें तर्पण 💫

जल में जौ, चावल, और गंगा जल मिलाकर तर्पण कार्य किया जाता है। पितरों
का तर्पण करते समय पात्र में जल लेकर दक्षिण दिशा में मुख करके बाया
घुटना मोड़कर बैठते हैं और जनेऊ को बाये कंधे से उठाकर दाहिने कंधे पर रख
लेते हैं। इसके बाद दाहिने हाथ के अंगूठे के सहारे से जल गिराते हैं। इस
मुद्रा को पितृ तीर्थ मुद्रा कहते हैं। इसी मुद्रा में रहकर अपने सभी
पित्तरों को तीन-तीन अंजलि जल देते हैं।

💫पिण्ड का अर्थ💫

श्राद्ध-कर्म में पके हुए चावल, दूध और तिल को मिश्रित करके जो पिण्ड
बनाते हैं, उसे सपिण्डीकरण कहते हैं। पिण्ड का अर्थ है शरीर।
यह एक पारंपरिक विश्वास है, जिसे विज्ञान भी मानता है कि हर पीढ़ी के भीतर
मातृकुल तथा पितृकुल दोनों में पहले की पीढ़ियों के समन्वित गुणसूत्र
उपस्थित होते हैं। चावल के पिण्ड जो पिता, दादा, परदादा और पितामह के
शरीरों का प्रतीक हैं, आपस में मिलकर फिर अलग बांटते हैं। जिन-जिन लोगों
के गुणसूत्र (जीन्स) आपकी देह में हैं, उन सबकी तृप्ति के लिए यह
अनुष्ठान किया जाता है।

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