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डिजिटल क्रांति कहीं मानसिक अशांति का कारण न बन जाये

डिजिटल क्रांति कहीं मानसिक अशांति का कारण न बन जाये

डिजिटल क्रांति कहीं मानसिक अशांति का कारण न बन जाये

प्रधान संपादक रितु राज ओझा

चारों तरफ अपने मूल दस्तावेज़, पहचान पत्र, आधार कार्ड इत्यादि बनाने और उन्हें विभिन्न सेवाओं से जोड़ने की होड़ लग गई है। ऐसा माहौल व्याप्त है कि मोबाइल फोन का मैसेज बॉक्स भर जाता है । जहां लगभग हर कोई आपसे आपका आधार कार्ड नंबर या केवाईसी अपडेट करने के लिए कह रहा है ।
कुछ सरकारी संस्थानों की तो औपचारिक और अनिवार्य  रूप से यह करने की घोषणा भी की गई है ।अब तक लेकिन आधिकारिक रूप से शायद कोई ऐसी सूची नहीं घोषित की गई है कि किस इस विभाग से जनता अपनी यह संवेदनशील जानकारी शेयर करे। इस बात को लेकर अब तक आम लोगों में कई भ्रांतियां है।
अधिकांश लोगों को समझ नहीं आता कि किस को अपडेट करने के लिए सहयोग करें और किस को ना करें । एक तरफ तो डिजिटल सुरक्षा के लिहाज से ऐसी कोई भी जानकारी किसी के साथ भी साझा न करने की हिदायत दी जाती है । वहीं दूसरी ओर बैंक तो ऐसे धमकाते रहते हैं कि यह जानकारी अपडेट न की गई तो खाता सील कर दिया जाएगा, जैसे कि जब खाता खोला जा रहा था तब तो कुछ लिया ही नहीं गया था ।
कभी मोबाइल कंपनियां मैसेज करती हैं कि केवाईसी पुनः जमा कराएं वरना आपका कनेक्शन काट दिया जाएगा। वही सारे सरकारी  और गैर सरकारी विभाग यह व्यवस्था अनिवार्य रूप से लागू करने के लिए पीछे पड़ गए हैं।ऐसे में आधार कार्ड बनाने वालों की संख्या इतनी कम है कि लोग घंटो भीड़ जमा कर लाइनों में खड़े रहते हैं। हालांकि व्यवस्था में सुधार के लिए यह ज़रूरी भी लग रहा है लेकिन इसकी आड़ में कई खतरनाक खेल खेले जाने की संभावना और संदेह बना हुआ है।  अभी हाल ही में खबर मिली कि शहर में चल रही स्कूलों तक ने वहां पर पढ़ने वाले विद्यार्थियों तक से पुनः दस्तावेज़ व पासपोर्ट नंबर मांगना शुरू कर दिए हैं। अतः जानकारी चाही गई है कि यदि आपके स्कूल में कोई विदेशी बच्चा पढ़ रहा है या एन आर आई स्टेटस रखने वाला कोई बच्चा पढ़ रहा है तो उसके भी डाक्यूमेंट्स स्कूल में जमा कराए जाएं । आपका ईमेल ID आज तक सबसे सुरक्षित जगह हुआ करता थी। दुनियाँ से वह सब चीजें छुपा कर रखने के लिए जो आप जगजाहिर नहीं करना चाहते थे । युवाओं के मायने में उनकी प्रेमिका के प्रेम पत्रों की PDF या पुरानी किसी महबूबा की कुछ यादें कुछ तस्वीरें जो कभी किसी को दिखाई नहीं जा सकती हैं।
तो भैया सावधान !! ऐसी सभी जानकारियां अब ईमेल के सार्वजनिक होते ही  सरकार वहाँ भी घुस चुकी है और कुछ ही दिनों में सिस्टम से जुड़ने के बाद सरकार और सुरक्षा एजेंसियों को यह तक मालूम होगा कि आप के मोबाइल फोन में किसका नंबर किस नाम से फीड है। यह की आपकी गूगल ड्राइव में किसकी कौनसी-कौनसी तस्वीरें पड़ी है । वैध रूप से सरकार जान जाएगी कि आप इस वक्त मोबाइल लोकेशन के माध्यम से आखिर कहां है? कि आपने शाम को कहां खाना खाया और डिजिटल बिल देने पर कितने का खाना खाया। यह भी जान जाएगी की आपने कितने पेग दारु पी और कितना बिल चुकाया।
पराकाष्ठा तब हो जाएगी जब सरकार को यह तक मालूम होगा की कौन व्यक्ति किस गुप्त रोग से ग्रसित है । उसको इलाज के लिए कौन सा डॉक्टर देख रहा है और कौन सी दवाइयां दे रहा है बात तब थोड़ी और आगे बढ़ जाएगी जब
सिस्टम से जुड़ने के बाद सरकार गुप्त अभियान चला कर यह भी जान पाएगी कि कौन सा चरित्रवान नेता कौन सी पोर्न साइट देख रहा है और कितने घंटे से देख रहा है । जब यह डिजिटल क्रांति इस हद तक पहुंच जाएगी तो कहीं ना कहीं देश का आम आदमी क्या खास आदमी भी अपने आप को इस डिजिटल क्रांति का गुलाम समझने लगेगा । राज दरअसल वो योग्य तकनीक से लैस लोग करेंगे जो इस डिजिटल क्रांति के कर्णधार होंगे और किसी भी ऐसे डिजिटल व्यवस्था के ऊपर बैठकर वह लोगों की प्राइवेसी में घुसकर सब कुछ देख पाएंगे । शायद उसे अपने हित में परिवर्तित कर दुरुपयोग भी कर पाएंगे ।ऐसी स्थिति में आम आदमी के हाथ में कुछ नहीं रह जायेगा।
शायद यह भी नहीं रहेगा कि वह अपने खाली समय में अपने निजता के अधिकार का पूरा उपयोग करके अपने जीवन का आनंद भी ले पायेगा या नहीं । निजता के अधिकार को सुरक्षित रखने वाली कानूनी धाराओं का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा। विपक्ष और अन्य राजनीतिक पार्टियां शायद अभी यह सब कुछ नहीं देख पा रही हैं। उन्हें सिर्फ और सिर्फ झूठ सच कुछ भी करके अपनी सत्ता वापस लाने का नशा सर पर सवार है।किसी का ध्यान इस ओर नहीं है ।जबकि दुनियाँ के अन्य विकसित देश इस तरह की समस्याओं से पहले ही जूझ रहे हैं।
चाहे पूरा विश्व डिजिटल होने जा रहा है परंतु भारत जैसा देश अभी डिजिटल क्रांति वह ऐसी पारदर्शिता से होने वाली समस्याओं से निपटने के लिए शायद अभी मानसिक रूप से पूरी तरह से तैयार नहीं है ।

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