
दुनिया में जान से प्यारी दूसरी कोई चींज नहीं होती है और जान बचाने की प्राथमिकता सरकार भी देती है
दुनिया में जान से प्यारी दूसरी कोई चींज नहीं होती है और जान बचाने की प्राथमिकता सरकार भी देती है
विजय कुमार शर्मा बगहा प,च,बिहार
जानमाल की सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता होती है और सरकार इसके लिए तरह तरह के उपाय करती रहती है। हमारे यहाँ पर जान बचाने के लिए तमाम सरकारी व गैर सरकारी अस्पताल खुले हैं और मरीजों को त्वरित चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के लिए एम्बुलेंस सेवायें चलाई जाती हैं।मरीज की जान बचाने के लिए एम्बुलेंस को बिना रोकटोक जाने की व्यवस्था है।ट्रैफिक नियमों में भी एम्बुलेंस को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है ताकि मरीज की जान बचाई जा सके। इधर हमारी न्यायपालिका जनहित के मुद्दों पर लगातार ऐतिहासिक पहल कर रही है और चिकित्सा क्षेत्र में तो उसकी सजीवनी साबित हो रही है।
यदि यातायात जाम में फंसने से किसी मरीज को नुकसान होता है तो उसे अपराध की तरह माना जाय।अदालत ने कहा कि जहाँ जहाँ पर भी यातायात नियन्त्रित होता है वहाँ पर एम्बुलेंस व फायर को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाय। अदालत ने सरकार से कहा है कि यातायात को बाधित होने से बचाने के लिए यातायात को अतिक्रमण मुक्त करे और पार्किंग की व्यवस्था ठीक करें। अदालत ने साफ शब्दों में कहा है कि यह सुनिश्चित करना यातायात व्यवस्था में लगे अधिकारियों कर्मचारियों की होगी और जो इसमें असफल रहता है उसके खिलाफ अपराधिक के साथ विभागीय कारवाई की जाय। अदालत का यह आदेश मानव जीवन से जुड़ा हुआ है और अक्सर यातायात अवरुद्ध हो जाने से मरीज समय पर अस्पताल नहीं पहुंच पाता है और रास्ते में ही असमायिक मौत चिकित्सा उपलब्ध न हो पाने से हो जाती है। यह सही है कि इस समय सड़क के किनारे पटरियों पर अतिक्रमण बढ़ने लगा है जिससे पटरियां गायब होने लगी हैं। लोग वाहन सड़क के किनारे खड़ी करके मार्केटिंग करने चले जाते हैं जगह न मिल पाने से जाम लग जाता है और न जाने कितने लोगों की जान खतरे में पड़ जाती है। यह भी सही है कि अक्सर रोडजाम की स्थिति में अक्सर एम्बुलेंस फंसती रहती हैं। अदालत द्वारा यातायात क्लीयर रखने की पूरी जिम्मेदारी डियुटी पर तैनात अधिकारी कर्मचारी पर डालकर उत्तरदायी बना दिया है।
अदालत ने कहा है कि सड़क, पटरी व सर्विसलेन को हर हाल में सुरक्षित रखा जाय। जो कार्य सरकार की नैतिक जिम्मेदारी में आते हैं उनका बोध अदालत को कराना पड़ रहा है यह हमारी व्यवस्था से जुड़े लोगों के लिए शर्म की बात है।सड़कों पर अतिक्रमण के साथ साथ जाम लगने वाले चौराहों बाजारों आदि संवेदनशील स्थलों पर ट्रैफिक पुलिस नागरिक पुलिस कौन कहे जल्दी होमगार्ड तक उपलब्ध नहीं हैं जबकि ट्रैफिक दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ते जा रहे हैं। अदालत की इस समाजिक पहल मानवतावादी दृष्टिकोण से बहुत ही महत्वपूर्ण है और इसके लिए फैसला सुनाने वाली खंडपीठ बधाई की पात्र है।
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