
केदारनाथ धाम में भक्तों की अटूट आस्था, जानिए मंदिर से जुड़े रहस्य
रविवार, 29 अप्रैल 2018
भगवान आशुतोष के ग्यारहवें ज्योर्तिलिंग केदारनाथ धाम में भक्तों की अटूट आस्था है। केदारनाथ धाम की कथा पांडव काल से जुड़ी है। यह मंदिर कई रहस्य समेटे हुए है। यहां भगवान शिव का स्वयंभू लिंग स्थापित है, जहां यात्रा काल में बाबा केदार की पंचमुखी भोग मूर्ति की विशेष पूजा-अर्चना होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार केदारनाथ मंदिर आदि गुरु शंकराचार्य ने स्थापित किया था। यह निर्माण
कत्युरी शैली में होना बताया गया है।
मान्यता है कि महाभारत युद्ध में पांडवों द्वारा गोत्र हत्या और गुरु हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए हिमालय भ्रमण किया गया था। उन्हें महर्षि नारद ने हिमालय में पहुंचकर भगवान शंकर के दर्शन करने को कहा था। तब पांच पांडव द्रोपती के साथ केदारनाथ धाम पहुंचे थे, लेकिन भगवान शिव शंकर उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे। ऐसे में भगवान उनसे दूर-दूर भागते रहे, लेकिन पांडव भी भगवान का पीछा करते रहे।
इस दौरान केदार क्षेत्र में भगवान शिव ने पांडव से बचने के लिए भैंसे का रूप धारण लिया और वहां विचरण कर रहे अन्य भैंसों के समूह में जा मिले, लेकिन भीम ने उन्हें पहचान लिया और भगवान को पकड़ने लगे। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर पांडवों को साक्षात दर्शन दिए और उन्हें गोत्र और गुरु हत्या के पाप से मुक्त कर दिया। इसी बीच भगवान शंकर भूमि में धंसने लगे तो भीम उनका पृष्ठ भाग ही पकड़ पाया। इसलिए केदारनाथ में भगवान शिव के स्वयंभू लिंग के पृष्ठ भाग की पूजा की जाती है। जबकि अग्र भाग की पूजा नेपाल के पशुपातिनाथ में होती है।नाभि की पूजा द्वितीय केदार मद्महेश्वर, बाहु की पूजा तृतीय केदार तुंगनाथ, नेत्र की पूजा चतुर्थ केदार रुद्रनाथ तथा जटाओं की पूजा पंचकेदार कल्पेश्वर धाम में होती है। इन्हें पंच केदार कहा जाता है। केदारनाथ में गर्भ गृह के बाहर सभा मंडप में पांच पांडवों के साथ द्रोपती की मूर्ति भी विराजमान है। केदारनाथ के रावल भीमाशंकर लिंग के अनुसार भगवान आशुतोष के स्मरण और पूजा से भक्त सभी कष्टों से दूर हो जाते हैं।