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क्या कमजोर आंखों वाला व्यक्ति डॉक्टर बन सकता है? सुप्रीम कोर्ट करेगा विचार

क्या कमजोर आंखों वाला व्यक्ति डॉक्टर बन सकता है? सुप्रीम कोर्ट करेगा विचार

सुप्रीम कोर्ट इस विषय पर विचार के लिये सहमत हो गया है कि क्या कमजोर दृष्टि (लो विजन) की दिव्यांगता से पीड़ित व्यक्ति को एमबीबीएस कोर्स की पढ़ाई करने और मरीजों का इलाज करने की अनुमति दी जा सकती है। इस बीमारी में आंखों की रौशनी को दुरुस्त नहीं किया जा सकता। 

न्यायमूर्ति उदय यू ललित और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की अवकाश कालीन पीठ के समक्ष यह पेचीदा सवाल शुक्रवार को आया। पीठ ने अचरज व्यक्त करते हुये कहा कि क्या इस तरह की कमजोर रौशनी वाले व्यक्ति को डॉक्टर बनने और मरीजों का उपचार करने की अनुमति देना व्यावहारिक है। 

नीट-2018 पास करने वाले एक छात्र ने डाली है याचिका
पीठ ने नीट-2018 की परीक्षा पास करने वाले एक छात्र की याचिका पर केन्द्र और गुजरात सरकार को नोटिस जारी किये। इस याचिका में अनुरोध किया गया है कि उसे कानून के मुताबिक दिव्यांगता प्रमाण पत्र जारी किया जाये ताकि वह एमबीबीएस पाठ्यक्रम में प्रवेश ले सके। 

पीठ ने कहा , ''यदि आप वकालत या शिक्षण जैसे किसी अन्य पेशे के बारे में बात करें तो समझ में आता है कि एक दृष्टिहीन व्यक्ति सफलतापूर्वक इस क्षेत्र में काम कर सकता है। लेकिन जहां तक एमबीबीएस का संबंध है तो हमें देखना होगा कि यह कितना व्यावहारिक और संभव है। 
     
न्यायमूर्ति ललित ने एक नेत्रहीन इंटर्न के साथ अपने अनुभव याद करते हुये कहा कि उसे दस्तावेजों को पढ़ने में दिक्कत होती थी और वह डिजिटल दस्तावेजों को पढ़ने और उन्हें समझने के लिये ब्रेल रूप में परिवर्तित करता था। 
     
न्यायमूर्ति ललित ने कहा कि मेरे साथ सफलतापूर्वक अपनी इंटर्नशिप पूरी करने के बाद वह अब रोड्स स्कालर बन गया है और आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में अध्ययन कर रहा है। 

अव्यस्क छात्र पुरस्वामी आशुतोष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगडे और वकील गोविन्द जी ने कहा कि दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों से संबंधित 2016 के कानून में पहले से ही इस श्रेणी के लिये पांच प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है। 


     
उन्होंने कहा कि केन्द्र और गुजरात सरकार को निर्देश दिया जाना चाहिए । इस कानून के अंतर्गत आरक्षण के प्रावधानों को लागू किया जाये। 
     
इस पर पीठ ने कहा। '' शिक्षण और वकालत के पेशे के संदर्भ में कोई समस्या नहीं है लेकिन जब मेडिकल शिक्षा का सवाल आता है तो क्या ' लो विजन  की दिव्यांगता वाले व्यक्ति को अनुमति दी जा सकती है?हमे इस पर विचार करना होगा। 

पीठ ने छात्र को तीन दिन के भीतर अहमदाबाद के बी . जे . मेडिकल कालेज की समिति के समक्ष इस आदेश की प्रति के साथ पेश होने का निर्देश दिया। 

पीठ ने इस मामले की सुनवाई तीन जुलाई के लिये निर्धारित करते हुये कहा कि याचिका की मेडिकल जांच होगी और उसके ' लो विजन  से ग्रस्त होने संबंधी दावे के बारे में उचित चिकित्सा प्रमाण पत्र चार दिन के भीतर शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री में भेजा जाये। 

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