
अभूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल जी की अस्थि कलशयात्रा और उनके राजनीतिक समाजिक व्यक्तित्व पर विशेष-
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अभूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल जी की अस्थि कलशयात्रा और उनके राजनीतिक समाजिक व्यक्तित्व पर विशेष-
सम्पादकीय रितु राज
साथियों,
पूर्व प्रधानमंत्री भारतरत्न साहित्यकार रचनाकार पत्रकार अभूतपूर्व कार्यशैली अभूतपूर्व राजनेता पंडित अटल बिहारी बाजपेयी की अस्थि कलशयात्रा को भले ही विपक्षी राजनैतिक लाभ लेने का एक बहाना मान रहे हो लेकिन यात्रा के दौरान श्रद्धाजंलि देने एवं पुष्प अर्पित करने वालों की उमड़ रहा जनसैलाब राजनेताओं को कुछ दूसरा ही संदेशा दे रहा है।यह अटल जी का अटल व्यक्तित्व ही था कि पिछले नौ दस वर्षों के गुमनाम जीवन के बावजूद उनके प्रति देशवासियों का लगाव कम नहीं हुआ बल्कि इस दौरान कई गुना बढ़ गया।इस अभूतपूर्ण बढ़त एवं विश्वास के बारे उनकी पार्टी को खुद अहसास नहीं था अगर रहा होता तो दस साल में बीस बार तो नहीं कम से कम दस बार ही कोई वरिष्ठ उनसे मिलने जरूर गया होता। अटल जी त्यागी तपस्वी मानवीय समाजिक राजनैतिक समरसता एवं राष्ट्रीय अखंडता की प्रतिमूर्ति थे।अटल जी विचार यानी भाषण सुनने के लिये सभी राजनैतिक दल के नेता ही नहीं बल्कि सभी वर्गों के लोग आतुर रहा करते थे। अटल जी का ही राजनैतिक अटल विश्वास था जिसके चलते राजनैतिक दृष्टिकोण से अछूत मानी जाने वाली उनकी पार्टी को करीब दो दर्जन राजनैतिक दल समर्थन देकर जनतांत्रिक गठबंधन का गठन करके अपना नेता मानकर दो बार प्रधानमंत्री बनने का अवसर दिया।अटल जी राजनेता नही राजनैतिक की एक अनोखी पटकथा लिखने वाले महामानव थे जिनके पदचिन्हों पर चलने की जरूरत है।अटल जी को सभी दलों के नेता दिली सम्मान करते थे और सबका दर्द उनकी मृत्यु के छलकता दिखाई भी पड़ा। इसलिए उनकी अस्थि कलशयात्रा का राजनैतिक लाभ एक को नहीं बल्कि सबको मिलेगा। जो उनकी नीतियों रीतियों पर चलेगा लोग उसी को पसंद करेगें और उसके अनुयायी हो जायेंगे।आज की राजनीति एवं अटल जी की राजनीति में जमी आसमां का फर्क है अगर ऐसा न होता तो एससी एसटी को एकतरफा मौलिक और लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन करके जिस तरह से एक बड़े तबके के साथ अन्याय न किया गया होता। अटल जी का राजनैतिक समाजिक समरसता का जीवन ही था जिस पर हिन्दू भी रोया, मुस्लिम भी रोया, सिख भी रोया ईसाई भी रोया और गाँव घर गली चौराहे पर आम लोग रोये।अटल जी कीचड़युक्त तालाब में खिले उस गुलाब की तरह थे जो सबको प्यारा लगता है और लक्ष्मी जी उस पर आसान लगाती हैं।अटल जी की अस्थि कलशयात्रा में उमड़ रहा सैलाब जनमानस नहीं है क्योंकि हर आदमी उन्हें जानता और उनका सम्मान करता है। देश को दुनिया में अपनी परमाणु की ताकत अहसास कराने वाले भारत माता के सच्चे सपूत वैज्ञानिक अब्दुल कलाम को राजनैतिक कैरियर न होते हुये भी देश की सर्वोच्च कुर्सी पर बिठाकर दुनिया को चौंकाने वाले अटल जी ही थे। विदेश मंत्री के रुप में तमाम सहूलियतें देकर मुसलमानों के दिलों में राज करने की कुव्वत अटल जी में ही थी तभी तो जवाहरलाल नेहरु चाहे इंदिराजी रही हो सभी ने विपक्ष में होते हुये तमाम जिम्मेदारियों का दायित्व सौंपा और उनकी तारीफ की।अटल जी की अस्थि कलश यात्रा में उमड़ रहा जनसैलाब उनके निजी व्यक्तित्व का प्रत्यक्ष प्रमाण है।इसका लाभ भाजपा को कितना मिल सकता है यह भविष्य के गर्त के छिपा है।
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