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झरिया में 'क़ौमी एकता' के नाम पर एक साहित्यिक गोष्ठी का आयोजन

झरिया में 'क़ौमी एकता' के नाम पर एक साहित्यिक गोष्ठी का आयोजन

रवि फिलिप्स  (ब्यूरो चीफ धनबाद) भानुमित्र न्यूज़
झरिया, धनबाद।
इदारा अहले क़लम, झरिया के मुख्य कार्यालय, नूरी हाउस झरिया में 'क़ौमी एकता' के नाम पर एक साहित्यिक गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें झरिया, धनबाद, लोयाबाद के कविगण और साहित्यकार हाज़िर हुए। इस सभा की अध्यक्षता व संस्था के अध्यक्ष मशहूर शायर व आलोचक डॉ रौनक़ शहरी ने की और निज़ामत के फ़राइज़ को बाहुस्नो ख़ूबी के साथ इम्तियाज़ बिन अज़ीज़ ने दिया।

काव्य गोष्ठी के आरम्भ में इदारा अहले क़लम, झरिया के जनरल सेक्रेटरी सह त्रैमासिक पत्रिका के प्रधान सम्पादक डॉ. इकबाल हुसैन ने इस सभा के आयोजन के मक़सद पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज के माहौल में राष्ट्रीय एकता की बात करना मुल्क और क़ौम की अहमतरीन जरूरत है और इसी के पेशे नज़र आज की नशिस्त का आयोजन किया गया है। इस मौके पर उन्होंने अपने एक ताजातरीन काव्य रचना से भी श्रोताओं को भावविभोर किया। इस आयोजन के दौरान कौमी एकता के हवाले से शायरों ने भी अपने ग़ज़ल के अशआर से श्रोताओं के हौसले बुलंद किये और शक्ति सद्भावना की राह दिखाई।

उनकी रचनाएं कुछ इस तरह से प्रस्तुत हुईं...

मिले हैं नानको चिश्ती के हवाले से,
कहा है फख्रिया हिंदुस्तां से आए हैं। –  डॉ रौनक़ शहरी

कदम कदम में दुखों का नुज़ूल होता है,
निशात क्या है हथेली पे एक गुलाब कि बस। – डॉ. हसन निज़ामी

हर क़दम पे है ख़ौफ़ लुटने का, कोई कैसे करे सफ़र तन्हा। – साहिर उन्नावी

'जमाल' आएगा फिर वक़्ते जुदाई, अभी से दिल हमारा डूबता है। – जमाल अनवर 'जमाल' 

मैं तो सबसे प्यार करूँगा, उनको मुझसे हो न हो,
उनके दिल में बुग़्ज़ो हसद या मुझसे नफरत है तो है। – ग़ुलाम ग़ौस 'आसवी'

तय है कोई दूसरा गौतम तो आने से रहा,
बस यूँ ही बरगद तले हम बैठे हैं दो घड़ी। – रियाज़ अनवर

आप समझे हैं न ये हिमाक़त है,
मिल के रहना भी एक इबादत है। – इम्तियाज़ बिन अज़ीज़

चराग़ आँखें थीं, मिशअल की तरह थे चेहरे,
बरोज़े ईद नज़र आईं ज़रूरतें क्या-क्या। – इम्तियाज़ दानिश

क्या ख़ूब तमाशा ये दिखाने में लगी है।
शबनम है कि दोज़ख़ को बुझाने में लगी है। – डॉ. इकबाल हुसैन 

झरिया, धनबाद के जाने-माने फिक्शन लेखक ग्यास अकमल ने 
अफ़साना 'रमज़ान और ईद' के शीर्षक से सुनाया, जिसे श्रोताओं ने बहुत पसंद किया।
डॉ यूनुस फ़िरदौसी ने भी राष्ट्रीय एकता पर अपने बहुमूल्य सुझाव से नवाजा और कहा कि आज के माहौल में इस तरह के कार्यक्रम का होना बहुत ज़रूरी और प्रासंगिक है। अंत में श्रोताओं को धन्यवाद दिया और साहित्यिक गोष्ठी के अंत की घोषणा की।

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