आईआईटी आईएसएम में नारीवाद, अनुवाद संबंधी विचार और आलोचनात्मक पद्धतियों पर विचार-विमर्श किया
बुधवार, 12 फ़रवरी 2025
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रवि फिलिप्स (ब्यूरो चीफ धनबाद) भानुमित्र न्यूज़🖋️
धनबाद :आईआईटी आईएसएम धनबाद ने शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के प्रतिष्ठित जीआईएएन कार्यक्रम के तहत आधुनिक आलोचनात्मक परंपरा में महिला लेखिकाएँ और विचारक विषय पर एक विचारोत्तेजक वर्चुअल कार्यशाला का आयोजन किया। यह कार्यशाला 10 से 14 फरवरी तक आयोजित की गई थी और इसका संचालन मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान विभाग की प्रो. रजनी सिंह ने किया। इस कार्यक्रम में दुनियाभर के प्रख्यात विद्वानों ने नारीवाद, अनुवाद संबंधी विचार और आलोचनात्मक पद्धतियों जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की।
प्रमुख वक्ताओं में प्रो. मेना मित्रानो का सीए फोसकारी यूनिवर्सिटी अविनाश वेनेस वेनिस प्रो. रश्मि गौड़ आईआईटी रुड़की और प्रो. रजनी सिंह शामिल थीं, जिन्होंने आधुनिक आलोचनात्मक परंपराओं और नारीवादी चिंतन पर गहन बौद्धिक संवाद में भाग लिया।
जीआईएएन पाठ्यक्रम के दूसरे दिन, प्रो. रजनी सिंह ने गर्ट्रूड स्टीन और महिलाओं की आलोचनात्मक सोच में उनके महत्वपूर्ण योगदान पर एक ज्ञानवर्धक व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि स्टीन ने आधुनिक आलोचनात्मक परंपरा में एक केंद्रीय भूमिका निभाई और अपने नवाचारपूर्ण लेखन और दार्शनिक विचारों के माध्यम से आधुनिकतावादी साहित्य को प्रभावित किया। इस चर्चा में स्टीन की नारीवादी विचारधारा और आधुनिकतावादी साहित्य में उनकी विरासत को उजागर किया गया।उनके सत्र में दलित महिला लेखिकाओं और दलित नारीवादी ज्ञानमीमांसा (एपिसटेमोलॉजी) पर चर्चा की गई, जिसमें प्रतिनिधित्व, शक्ति संरचनाएँ और ज्ञान उत्पादन जैसे विषयों का विश्लेषण किया गया। इस व्याख्यान में मानवता की विवादित परिभाषा, गायत्री चक्रवर्ती स्पिवाक की दलित प्रतिनिधित्व पर आलोचना और सैंड्रा हार्डिंग द्वारा ज्ञान में वस्तुनिष्ठता को चुनौती देने जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को शामिल किया गया। चर्चा में जाति और लिंग पदानुक्रम की संयुक्त रूप से उत्पीड़नकारी प्रकृति को रेखांकित किया गया और सामूहिक पहचान व एकजुटता की आवश्यकता पर जोर दिया गया। प्रो. सिंह ने इस विचार को बल दिया कि दलित संघर्ष को उनका संघर्ष नहीं बल्कि हमारा संघर्ष समझने की आवश्यकता है, और उत्पीड़न को चुनौती देने व स्वायत्तता स्थापित करने के लिए जीवन-लेखन और अंतर्विभागीय विश्लेषण को आवश्यक उपकरण बताया।व्याख्यानों के बाद इंटरैक्टिव ट्यूटोरियल आयोजित किए गए, जहाँ प्रतिभागियों ने चर्चा की, महत्वपूर्ण प्रश्न पूछे और वक्ताओं से गहन उत्तर प्राप्त किए। इस कार्यशाला का उद्देश्य मानविकी के भीतर होने वाले प्रमुख बदलावों की व्यापक समझ प्रदान करना था, जिसमें आलोचनात्मक चिंतन को केंद्रीय रूप में रखा गया। प्रतिभागियों को साहित्यिक आलोचना, आलोचनात्मक सिद्धांत और साहित्य सिद्धांत के शास्त्रीय ग्रंथों की व्याख्या, चर्चा और मूल्यांकन करने के लिए प्रेरित किया गया, साथ ही उनकी अंतर्विभागीय प्रासंगिकता की भी खोज की गई।150 से अधिक प्रतिभागियों के साथ, यह कार्यशाला सफलतापूर्वक अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में सक्षम रही, जिससे प्रतिभागियों को विभिन्न विषयों में लागू होने वाली आलोचनात्मक पद्धतियाँ सीखने, गहन शैक्षणिक ज्ञान प्राप्त करने और शोध क्षमता बढ़ाने का अवसर मिला। इस आयोजन ने आईआईटी आईएसएम धनबाद की अकादमिक उत्कृष्टता और भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली में मानविकी और आलोचनात्मक चिंतन को बढ़ावा देने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका को पुनः स्थापित किया।
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