
आरम्भ हुआ चार दिवसीय लोक उपासना का महापर्व छठ
आरम्भ हुआ चार दिवसीय लोक उपासना का महापर्व छठ
साहिबगंज, संवाददाता।
आज से ‘नहाय-खाय’ के साथ लोक-आस्था के महान पर्व छठ के चार-दिवसीय आयोजन का आरम्भ हो रहा है। छठ सूर्य की उपासना का लोक-पर्व है। हमारे अनगिनत देवी-देवताओं में से एक सूर्य ही हैं वह सूर्य के कारण ही हैं। सूर्य न होते तो न पृथ्वी संभव थी, न जीवन और न पृथ्वी का अपार सौंदर्य। मुख्यतः बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखण्ड और नेपाल की तराई के कृषक समाज द्वारा मनाए जाने वाले इस चार-दिवसीय पर्व की शुरुआत कार्तिक के शुक्ल पक्ष की चौथी तिथि को तथा समाप्ति कार्तिक शुक्ल पक्ष की सातवीं तिथि को होती है। इस दौरान व्रतधारी बिना अन्न-जल के लगातार छत्तीस घंटों का व्रत रखते हैं। अन्न-जल के त्याग के साथ ही उन्हें सुखद शैय्या का भी त्याग कर फर्श पर कंबल या चादर बिछाकर सोना होता हैं। निश्छल लोकगीतों के साथ छठी तिथि की शाम को डूबते और सातवी तिथि को प्रातः उदित होते सूर्य को नए कृषि उत्पादों और दूध के साथ अर्घ्य देने के साथ पर्व का समापन होता है। इन चार दिनों में घर से लेकर देह और मन तक की पवित्रता का जैसा ध्यान रखना होता है। प्रचलित कथा के अनुसार सूर्यवंशी राम ने लंका से लौटकर कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को सीता के साथ अपने कुलदेवता सूर्य की उपासना की थी और सरयू के जल से सूर्य को अर्घ्य दिया था। उनकी देखा देखी उनकी प्रजा ने सूर्य की उपासना की परंपरा शुरू की। महाभारत काल में सूर्यपुत्र कर्ण द्वारा सूर्य की पूजा की कथा प्रसिद्द है। कर्ण सूर्य के उपासक थे और रोज घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से वे महान योद्धा बने। जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गये, तब कृष्ण ने द्रौपदी को छठ का व्रत रखने की सलाह दी थी। द्रौपदी द्वारा कई सालों तक यह व्रत करने के बाद पांडवों की मनोकामनायें पूरी हुईं और उनका खोया हुआ राज्य और वैभव उन्हें वापस मिला। कृष्ण के पौत्र शाम्ब को कुष्ठ रोग हो गया था। इस रोग से मुक्ति के लिए भी उनके परिवार द्वारा सूर्योपासना का उल्लेख आया है।
इस पर्व के बारे में लोगों की आम जिज्ञासा यह है कि सूर्य की उपासना के इस पर्व में जिन छठी मैया की पूजा होती है और जिनकी शक्तियों के गीत गाए जाते हैं।
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