
वामपंथ का भटकता रास्ता
विजय कुमार शर्मा प,च,विहार की कलम से
एक समय सम्पूर्ण भारत में वामपंथ का पताका तेजी से फैल रहा था, उस वक्त केन्द्र के विकल्प के तौर पर देखा जाने लगा।
वामपंथ पार्टी नही बल्कि एक मजबूत विचारधारा हैं जो एक दशक में सम्पूर्ण भारत में फैल चुका था।
वामपंथी उस दौर में सदन और सड़क पर मजदूर,गरीब और किसानो की सीधा आवाज उठाती थी, वास्तव में क्रान्ति का वो दौर बहुत महत्वपूर्ण कि वामपंथ से महान कामरेड, विचारक उपज हुये जो हमेशा बस सर्वहारा समाज की चितंन करते थे।
आज के कामरेड कुछ अच्छे है लेकिन मुफ्तखोर और सत्ता के अभिलाषा नें वामपंथ विचारधारा को जड़ से हिलाकर रख दिया।
वर्तमान वामपंथियो में सच सुनने का साहस और राष्ट्रवादी हित को अनदेखा करने की कोशिश होती रही है, समाज को हजारो वर्ष के इतिहास को दिखाकर फूट डालना तथा विवादो में रहकर सुर्खिया बटोरना है।
क्या यही वामपंथ का विचारधारा है, जो केरल में हिसंक दौर चल रहा गरीब आदिवासी को चावल की चोरी पर पीटकर मारा जाता और वामपंथी शोषित के जुल्म पर चुप हो।
0 Response to "वामपंथ का भटकता रास्ता"
एक टिप्पणी भेजें