
धरती के भगवान माता पिता पर विशेष
सम्पादकीय
विजय कुमार शर्मा की कलम से प,च,बिहार
जिनके माता पिता जीवित हैं और साथ में रहते हैं उनसे बड़ा सौभाग्यशाली इस संसार दूसरा कोई नहीं है। माता पिता का सानिध्य मिलने का मतलब ईश्वर अपने दोनों स्वरुपों में आपके साथ रह रहा है और जिसके साथ ईश्वर रहता है उसका कोई बाँलबाँका नही कर सकता है। माता पिता को इसीलिए ईश्वर का प्रत्यक्ष लघु स्वरूप माना जाता है क्योंकि माता पिता ही इस धराधाम पर आने के माध्यम होते हैं। बिना माता पिता के बिना कोई इस धरती पर नहीं आ सकता है इसीलिए दोनों को जन्मदाता ही नहीं बल्कि पालक पोषक संरक्षक माना जाता है। जब तक माता पिता जीवित रहते हैं तबतक कोई गम कोई हेडक कोई चिंता नहीं रहती है और सारे गम चिंता दुख को माता पिता कवच बनकर झेल लेते हैं।माता पिता के महत्व के बारे में रामायण में तुलसी बाबा ने भगवान रामके बारे में लिखा है कि-" प्रातकाल जागै रघुनाथा मातु पिता गुरु नावै माथा"।माता पिता का स्थान सर्वोच्च माना गया है और गुरू को उसके समकक्ष कहा गया है। इसीलिए माता पिता को जीवन का प्रथम गुरू भी माना जाता है।माता पिता की सेवा करने से ईश्वर की पूजा अर्चना करने का फल मिल जाता है और जो लोग भक्त श्रवण कुमार की तरह अपने माता पिता को ईश्वर स्वरूप मानते हैं उन्हें देवी देवता भगवान की पूजा अर्चना जप तप करने का फल मिल जाता है।दुनिया में माता पिता का एक ऐसा कर्ज होता है जिसे कोई चुकता नहीं कर पाता है।माता पिता लाख गलती के बावजूद कभी संतान का अहित या अनभला नहीं चाहता है बल्कि रात दिन ईश्वर से उसकी सलामती की दुआ माँगता रहता है।माता पिता ही एक ऐसे होते हैं जो संतान को सदा प्रसन्नचित सुखी देखना चाहते हैं भले ही वह उससे दूर या अलग अपने परिवार के साथ रहता हो।माता पिता संतान का पालन पोषण जिस तरह से बचपन में करते हैं उसी तरह के लालन पालन की उम्मीद संतान से भी बुढ़ापे में करते हैं।जिनके माता पिता सौभाग्य से साथ रहते हैं उन्हें शाम होते ही संतान के नौकरी मजदूरी दूकान आदि से वापस लौटने की चिंता सताने लगती है और प्रायः जब तक संतान घर नही लौटती है तबतक वह भोजन ग्रहण नहीं करते हैं। माता पिता एक ऐसी बैंक होते हैं जहाँ पर बिना जमा किये ही मौका पड़ने पर जितनी जरूरत होती है उतना पैसा मिल जाता है। आजकल दुनिया भले ही विकास करके चन्द्रमा या मंगल पर पहुंच गयी हो लेकिन हमारी नैतिकता मानवता और संस्कृति हमसे कोसों दूर होती जा रही है। आजकल प्रायः लोग शादी ब्याह या एक दो बच्चे होते ही अपना आशियाना माता पिता से अलग कर लेते हैं।बदलते समय में कुछ लोग माता के साथ रहना पसंद नहीं करते हैं क्योंकि उनकी पत्नियां उनके साथ रहने के लिए राजी नहीं होती हैं और जोर देने पर छोड़कर चली जाने की धमकी देने लगती हैं।यहीं कारण है कि आजकल माता पिता का महत्व घटता जा रहा है और लोग उन्हें अपने साथ नही रखते हैं।ईश्वर तुल्य माता पिता को साथ रखने की जगह उन्हें अनाथालयों एवं वृद्धाश्रमों में भेजा जाने लगा है।लोगों माता पिता के बुढ़ापे की लाठी बनने की जगह उनका मुंह नहीं देखना चाहते हैं।ध्यान रखें कि जिस तरह का व्यवहार आप अपने माता पिता के साथ करेंगे बिल्कुल उसी तरह का व्यवहार आपकी संतान आपके साथ करेगी। माता पिता का अपमान ईश्वर के अपमान तिरस्कार के बराबर माना गया है।
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