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ठगीः डिजिटल बैंकिंग के युग में साइबर ठगों ने 1400 खातों से उड़ाए 10 करोड़ रुपये, जानिए कैसे सुरक्षित रहेंगे आपके पैसे

ठगीः डिजिटल बैंकिंग के युग में साइबर ठगों ने 1400 खातों से उड़ाए 10 करोड़ रुपये, जानिए कैसे सुरक्षित रहेंगे आपके पैसे

नोटबंदी के बाद डिजिटल बैंकिंग का चलन बढ़ा तो शातिरों ने ठगी का हाईटेक तरीका चुन लिया। कानपुर में एक साल के भीतर 1400 लोगों को सिम क्लोनिंग की वजह से 10 करोड़ रुपये की चपत लगी है। इनमें से 86 मामलों में एफआईआर दर्ज हैं तो 13 का पुलिस ने खुलासा भी कर दिया है।

अहम बात यह है कि ठगी का पीड़ित को उस वक्त पता चलता है, जब बैंक से वह पैसा निकालता है या स्टेटमेंट व पासबुक अपडेट कराता है। सर्विलांस सेल के साथ मिलकर क्राइम ब्रांच ऐसे कई कई मामलों की जांच में लगी है। सर्वाधिक मामले चकेरी और ग्वालटोली थाने में दर्ज  हैं। जांच से एक बात जरूर साफ हुई कि हर घटना के पीछे कहीं न कहीं गड़बबड़ी सेवा प्रदाता मोबाइल कंपनियों की है, जिनके जरिए अंगूठे के निशान साइबर अपराधियों तक पहुंच गए। क्राइम ब्रांच ने ऐसी कंपनियों पर शिकंजा कसने की तैयारी शुरू कर दी है। सभी से सुरक्षा कवच मजबूत न करने और गोपनीयता भंग करने का जवाब मांगा जाएगा। 

पुलिस महानिरीक्षक आलोक सिंह ने बताया कि सिम कार्ड व थंब इंप्रेशन की क्लोनिंग के जरिए साइबर क्राइम की घटनाएं बढ़ रही हैं। कुछ मोबाइल कंपनियों के कर्मचारी भी इसमें शामिल हैं। कंपनियों से पूछा जाएगा कि सुरक्षा कवच क्यों नहीं तैयार किया और आगे कदम क्यों नहीं उठा रहे। लोगों को भी जागरूक होने की जरूरत है। 
 
साइबर क्राइम रोकने को आईआईटी करेगा मदद
आईआईटी कानपुर के उप निदेशक मणींद्र अग्रवाल का कहना है कि साइबर क्राइम रोकने के लिए आईआईटी पुलिस की मदद करेगा। इसे लेकर यूपी पुलिस से करार हुआ है। विशेषज्ञों ने 5 साल का प्रोजेक्ट तैयार किया है। अपराधियों की लोकेशन की जानकारी भी विशेषज्ञ उपलब्ध कराएंगे। साइबर एक्सपर्ट पुलिस के अधिकारियों को भी ट्रेंड करेंगे। यूपी पुलिस से कंप्यूटर के जानकार अफसरों की मांग भी की है। सिम क्लोनिंग, एटीएम क्लोनिंग, पासवर्ड व डाटा हैकिंग जैसे अपराधों को रोकने और सुलझाने के लिए आईआईटी विशेष तकनीक भी इजाद करेगी।

स्टेप 1-
इस तरह होती है सिम की क्लोनिंग
सिम लेने के लिए थंब इंप्रेशन मशीन पर आपके अंगूठे के निशान लिए जाते हैं, जिसके बाद आधार कार्ड की डिटेल आ जाती है। यही डिटेल कंपनियों में काम करने वाले कुछ लोग साइबर अपराधियों को बेच देते हैं। फिर अंगूठे के निशान का रबड़ स्टैंप तैयार कर दूसरी मशीन पर नया सिम एक्टिवेट किया जाता है। इससे बार-बार रकम निकालने का धंधा शुरू हो जाता है। 

स्टेप 2-
इस तरह ट्रांसफर करा लेते रकम
नए सिम से गूगल के प्ले स्टोर पर जाकर पेटीएम वॉलेट, भीम एप या पेज एप जैसे अप्लीकेशन डाउनलोड किए जाते हैं। ऐसे अप्लीकेशन में पासवर्ड की जगह अंगूठा या अंगुलियों के निशान ही पर्याप्त होते हैं। पहले से क्लोन किए हुए रबर स्टैंप का इस्तेमाल मोबाइल अप्लीकेशन के ऊपर रख किया जाता है और ट्रांजेक्शन के लिए खाता नंबर या दूसरी पेटीएम आईडी डाली जाती है जिस पर रकम ट्रांसफर हो जाती है।

स्टेप 3-
सॉफ्टवेयर से निकालते हैं डिटेल
मोबाइल चुराने वाले आपके सिम का क्लोन तैयार कर लेते हैं। जब तक आप सिम को ब्लॉक या नया लेते हैं, तब तक सॉफ्टवेयर के जरिए साइबर ठग सारी डिटेल निकाल तेले हैं। अगर आपने बैंक से मोबाइल नंबर को लिंक कराया होगा तो भी सॉफ्टवेयर के जरिए इसका विवरण निकाला जा सकता है।

इन पांच बातों का रखें ख्याल
1. मोबाइल का सिम लेना हो तो सीधे कंपनी के अधिकृत स्टोर पर ही जाएं। इधर-उधर की दुकानों से सिम नहीं लें।
2. मोबाइल पर आने वाले किसी भी मैसेज या मेल का ध्यान न दें जिसमें आपको राहत देने की बात कही जा रही हो। 
3. किसी भी थंब इंप्रेशन मशीन पर अंगूठा या अंगुली रखने से तब तक बचें जब तक कि उसके सही होने की पुष्टि न हो। 
4. फेसबुक फ्रेंड अथवा मैसेंजर पर मैसेज करने वाले किसी भी शख्स के झांसे में न आएं। मेल पर भी गौर न करें। 
5. साइबर कैफे में जाने से बेहतर है कि अपने मोबाइल ही इंटरनेट के जरिए ऑनलाइन बैंकिंग का इस्तेमाल करें।

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