
उत्तराखंड : माता-पिता और दो भाइयों को खो चुकीं पूनम ने माउंट एवरेस्ट पर फहराया तिरंगा
मंगलवार, 22 मई 2018
उत्तराखंड के उत्तरकाशी की पूनम राणा ने जिंदगी की मुश्किलों को मात देकर जो मुकाम हासिल किया उसे जानकार हर कोई उनके जज्बे को सलाम करेगा। अपने माता-पिता और दो भाइयों को खो चुकी नाल्ड गांव की 21 वर्षीय पूनम राणा ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराया है। टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन (टीएसएएफ) के सहयोग से पूनम ने यह सफलता हासिल की है।
पूनम के साथ दो और साथी थे। इसमें उत्तरकाशी के ही नाकुरी गांव के संदीप टोलिया और भुवनेश्वर उड़ीसा की रहने वाली स्वर्णलता शामिल थीं। टीएसएएफ की चीफ एवं पहली महिला एवरेस्ट विजेता बचेंद्री पाल की पहल पर पूनम और उसके साथियों ने ये मुकाम हासिल किया है। इन लोगों के एवरेस्ट फतह करने पर बछेंद्री पाल ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि उनकी जुनूनी युवाओं को एवरेस्ट के शिखर पर पहुंचाने की इच्छा पूरी हुई है। बताया कि इन एवरेस्ट विजेताओं का टाटा स्टील ऐडवेंचर फांउडेशन जमेशदपुर (झारखंड) में भव्य स्वागत किया जाएगा।
बचपन में उठ गया माता-पिता का साया
पूनम वर्ष 2016 से टीएसएएफ में इंस्ट्रक्टर का काम कर रही हैं। उत्तरकाशी के कफलो (नौगांव) स्थित टीएसएएफ बेस कैंप में काम करने वाली पूनम राणा ने बताया कि जब वह छह महीने की थी तभी उसकी मां देवेंद्री देवी का निधन हो गया और जब वह पांच वर्ष की हुई, तो उसके सिर से पिता धरम सिंह का साया उठ गया। वह अपने माता-पिता के बारे में उतना ही जानती है, जितना की भाई-बहनों ने बताया। पूनम का लालन-पालन भाई कमलेश सिंह और भगवान सिंह ने किया। पूनम की दो बहनें भी हैं। पूनम जब 17 साल की थी तब उनके बड़े भाई कमलेश की बीमारी से मौत हो गई और 2016 में तब सबकुछ छिन गया, जब सड़क दुर्घटना में छोटे भैया भगवान सिंह की भी दुनिया से विदा हो गए।
बचेंद्री ने दी जीवन को नई दिशा
पूनम 2016 में ही बचेंद्री पाल से मिलीं और उसे जीने का नया नजरिया मिल गया। बचेंद्री ने पूनम की स्थिति को समझते हुए उन्हें उत्तरकाशी स्थित बेस कैंप में इंस्ट्रक्टर के पद पर नियुक्त कर दिया। नौकरी मिलने के बाद पूनम पर्वतारोहन और पढ़ाई को आगे बढ़ाने में जुट गईं। महज दो वर्षों के अंतराल में ही उन्होंने अपनी मेहनत से बचेंद्री पाल को इतना प्रभावित किया कि आज उनका नाम एवरेस्ट विजेताओं में शामिल हो गया है। पूनम वर्तमान में उत्तरकाशी स्थित उनियाल कॉलेज में पीजी की छात्रा हैं।
गहन प्रशिक्षण के बाद मिला मौका
बछेंद्री पाल ने ‘हिन्दुस्तान’ को बताया कि टाटा फाउंडेशन से उन्होंने जुनूनी युवाओं को एवरेस्ट चढ़ने की इच्छा जाहिर की थी। जिस पर अनुमति मिलने के बाद उन्होंने इन युवाओं को तैयार करने का निर्णय लिया। उत्तरकाशी सहित देश के विभिन्न हिस्सों में इन्हें शारीरिक गहन प्रशिक्षण करवाया गया। इसका परिणाम है कि तीनों ही एवरेस्ट फतह करने में सफल रहे। बता दें कि टाटा स्टील ने बचेंद्री पाल के प्रथम भारतीय महिला एवरेस्ट विजेता बनने पर 1984 में टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन स्थापित किया था। 33 साल बाद फिर से उत्तरकाशी की एक और बेटी एवरेस्ट फतह में कामयाब रही। साथ में जिले के युवा संदीप भी सफल हुए।
पूनम के साथ इन दो साथियों ने फतह किया एवरेस्ट
स्वर्णलता दलाई : ओडिशा के जाजपुर स्थित जगधिया गांव की रहनेवाली 20वर्षीय पर्वतारोही स्वर्णलता दलाई को बचपन से ही पर्वतारोही का शौक था, लेकिन अपने गांव के लोगों की दकियानूसी सोच के कारण उसके पांव ठिठके हुए थे। गांव के लोग लड़कियों के पर्वतारोही जैसे अभियान में भेजा जाना उचित नहीं समझते थे, लेकिन बचेंद्री पाल से मुलाकात होते ही स्वर्णलता के हौसले को पंख लग गए और आज वह मिशन एवरेस्ट को पूरा कर मुकाम हासिल कर चुकी हैं।
संदीप तौलिया : एवरेस्ट अभियान में शामिल तीसरे पर्वतारोही संदीप तौलिया पिछले दस वर्षों से टीएसएएफ में इंस्ट्रक्टर के पद पर कार्यरत हैं। 42 वर्षीय संदीप को पर्वतारोही का अच्छा-खासा अनुभव प्राप्त है। वे एवरेस्ट पर जाने से पूर्व पर्वतारोही के अन्य कई अभियान पर जा चुके हैं।