
पाकुड़ की शोभा बढ़ा रही है यूजलेस जगह में लगा नगर परिषद का डस्टबिन
पाकुड़ की शोभा बढ़ा रही है यूजलेस जगह में लगा नगर परिषद का डस्टबिन
पाकुड़ संवाददाता नीरज मिश्रा
पाकुड़ - इसे लापरवाही माना जाय या नगर परिषद का बिना सर्वे किये गए कार्य का नतीजा की शहर में लगे ज्यादातर डस्टबिन यूजलेस पड़े हुए है जबकि शहर में ऐसे बहुतों उपयोगी स्थान है जहां ये डस्टबिन लगाने से इसकी उपयोगिता सिद्ध हो सकती थी परंतु इस उपयोगी चीज को भी नगर परिषद के क्रियाकलाप ने अनुपयोगी साबित कर दिया है । कहने को तो ये स्वच्छता कार्यक्रम को आगे बढाने में उपयोगी साबित होगा पर ये सिर्फ हाथी के दांत ही साबित होकर रह गया है । लगाए गए डस्टबिन की जगह की बात करूँ तो एक डस्टबिन हरिणडांगा उच्च विद्यालय के समीप रोड के किनारे झाड़ , जंगलों , झुरमुट के बीच लगा डस्टबिन , दूसरा कब्रिस्तान के समीप लगा डस्टबिन , तीसरा हाथी धुंआ पोखर के पास झाड़ , झुरमुट के पास आदि आदि ।सवाल उठता है, कि झाड़ जंगल और कब्रिस्तान के पास लगे डस्टबिन में डस्ट डालेगा कौन ? क्या झाड़ियाँ जो खुद गन्दगी है, अपने आप डस्टबिन में चला जायेगा, या फिर कब्रिस्तान के मुर्दे कब्र से निकल कर डस्टबिन की उपयोगिता सिद्ध करेंगे?
जबकि इसी डस्टबिन को अगर हरिणडांगा उच्च विद्यालय के मुख्य द्वार के पास , आदर्श बिलटु मध्य विद्यालय के मुख्य द्वार के पास एवं ऐसे ही कुछ जगहों पर अगर लगा दिया होता तो प्रधानमंत्री जी के स्वच्छता अभियान को बल मिलता,पर नगर परिषद खुद ही अपने मन माफिक यहां वहां लगाकर अपने कार्यों की इतिश्री करने में व्यस्त है । कोई भी पार्षद या अध्यक्ष उपाध्यक्ष इस सवाल पर सिर्फ़ अगर ऐसा है, तो इसे स्थानांतरित कर सुधारने की बात कह अपनी चुप्पी तोड़ते हैं, उधर विशेष पदाधिकारी जाँच और सुधार की बात कहते तो हैं, लेकिन इन डस्टबिनों को बिना उपयोगिता की जाँच कर सन्तुष्ट हुए, लगा कैसे दिया गया, इस पर जवाब किसी के पास नही है। सुधार तो सवाल उठने पर हो ही जाएगा, लेकिन फिर भी सवाल बना रह जाता है, कि स्थानीय प्रतिनिधि अगर अपने इलाके के उपयोगी स्थान और सामानों की उपयोगिता को भी नही जानते तो यह चिंता का विषय है, और अगले निकाय चुनाव में मतदाताओं को चिंतन की आवश्यकता भी।
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