
गांव के शहीद आज भी गुमनाम बने हुए हैं:- संतोष पाठक
विश्रामपुर : देश को आजाद कराने में अपनी अभूतपूर्व योगदान देते हुए शहीद हुए गुमनाम रहे लोगों की आत्माओं की शांति को ले सोमवार को राजहारा नावाबाजार प्रखंड के राजहरा कोठी पर श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गई। इसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। सभा की अध्यक्षता शहीदों को सम्मान दिलाने को संकल्पित अधिवक्ता संतोष कुमार पाठक व संचालन अखिलेश पाठक ने किया।
संतोष कुमार पाठक ने कहा कि गुलाम भारत को आजाद कराने को देश के कोने कोने में अलग-अलग रूपों में स्वाधीनता की लड़ाई लड़ी गई। इसमें हजारों लोगों को फांसी दी गई थी। इसमें मां ने बेटे को व पत्नी ने पति को व बहनों ने अपने भाई को खोया। ऐसे में पलामू जिले के नावाबाजार प्रखंड का एक राजहरा कोठी गांव में शहीद हुए सैकड़ों लोग आज भी गुमनाम हैं। इन्हें झारखंड में सम्मान के पटल पर लाना पहली प्राथमिकता होगी। स्थानीय लोगों के साथ मिलकर सम्मान की लड़ाई लड़ी जाएगी। केंद्र व राज्य सरकार से गुमनाम शहीदों को सम्मान दिलाने की मांग की जाएगी। यहां 1857 के विद्रोह में राजहरा कोठी गांव की अपनी एक अलग पहचान थी। अखिलेश पाठक ने कहा कि देश आजाद कराने के लिए लोगों ने अपनों को खोया। और भी क्या-क्या नहीं कुर्बानी दी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कई लोग इतिहास के पन्नों में अपनी गाथा अमर कर गए। इसका गर्व से देश में नाम लेता है। ऐसे में पलामू जिले के नावाबाजार प्रखंड का एक राजहरा गांव के शहीद आज भी गुमनाम बने हुए हैं। स्थानीय इतिहासकारों ने इस गांव को चर्चा में ला रहे हैं। किताबों व अपनी इतिहास के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाकर क्षेत्र की बदहाली सामने लाने का प्रयास जारी है। मौके पर वृज किशोर तिवारी, धनंजय मिश्रा, उपनेती तिवारी, प्रमोद पाठक, सत्येंद्र प्रसाद, हरेंद्र कुमार, बीरेंद्र प्रजापति, जितेंद्र चौहान, कुंदन कुमार, कंचन मेहता, सुरेंद्र चंद्रवंशी ने पारंपरिक इतिहास की चर्चा करते हुए घटनाक्रम की विस्तृत जानकारी दी। बताया कि 1857 के पूर्व राजहारा कोठी क्षेत्र में बंगाल कोल कंपनी माइनिग का काम करती थी। इस पर पूरी तरह अंग्रेजों का अधिकार था। 1857 ई. में हुए आंदोलन के बाद लोगों में अंग्रेजो के प्रति उबाल आया। इसमें अलग-अलग क्षेत्रों से आए सैकड़ों लोगों की जानें गई थीं। 1857 में पहला स्वतंत्रता संग्राम के बाद यहां के स्थानीय लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंका दिया। आस-पास के सैकड़ों लोगों ने राजहरा कोठी स्थित अंग्रेज बंगला को घेर लिया। साथ ही माइनिग को बंद करने का आंदोलन खड़ा किया। वक्ताओं ने कहा कि इतिहासकारों ने लिखा है कि पलामू के इतिहास व संस्कृति से जानकारी मिलती है कि उस समय अंग्रेजों की यहां कोठी थी। इसका अस्तित्व आज भी खंडहर में तब्दील है। यहां सैकड़ों अंग्रेज सिपाही भी तैनात थे। भारतीयों की ओर से किए जा रहे आंदोलन इन अंग्रेजों व इसके सिपाहियों को पसंद नहीं आया। परिणाम हुआ कि आंदोलन करने वालों करीब 500 लोगों को अंग्रेजों ने राजहारा कोठी स्थिति बरगद के पेड़ से लटका कर फांसी दे दी थी। स्थानीय लोगों की माने तो कोठी बाजार प्रांगण का विशाल बरगद का पेड़ अब भी कायम है। बताया जाता है कि विरोध करने वाले लोगों को पेड़ के नीचे खड़ा कर रस्सी के सहारे फांसी दे दी जाती थी। यह सब 1857 में हुए आंदोलन को दबाने के प्रयास था।
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