डिजिटल युग में उद्यमिता पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी
रवि फिलिप्स (ब्यूरो चीफ धनबाद)
SINDRI: बी.आई.टी सिंदरी के लिए आज का दिन ज्ञान, उद्यम-उद्योग और मनोरथ को परिभाषित करने वाला रहा। आज के समय को डिजिटल युग कहा जा रहा है, क्यूं कि बिना इसके विकसित विश्व की परिकल्पना करना मिथ्या है। इस संगोष्ठी से संस्थान आए नवप्रवेशी छात्रों को डिजिटल युग से जोड़ने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना और किस प्रकार इससे छात्रों में नेतृत्व क्षमता, अवसर का मूल्यांकन, दूरदर्शिता, संचालन क्षमता की वृद्धि हो।
आज सी-51 सभागार में 'इंटरनेशनल सिमपोजियम ऑन आंत्रप्रेन्योरशिप ईन डिजिटल एरा - २०२२' का शुभारंभ हुआ।सत्र के शुरुआत में तालियों की गड़गड़ाहट के साथ सभी अतिथियों, और कई गणमान्य उद्यमियों का स्वागत किया गया। इस अत्यंत महत्वपूर्ण कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन से हुई।
इस अंतराष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रथम वक्ता बी.आई.टी. सिंदरी के उत्पादन एवं औद्योगिक अभियंत्रण विभाग के प्रमुख, श्री डॉ. प्रकाश कुमार थे। डॉ. प्रकाश ने उपस्थित श्रोताओं को संगोष्ठी के सभी प्रतिष्ठित वक्ताओं से परिचित कराया। उनके पश्चात बी.आई.टी. सिंदरी के निदेशक डॉ. डी.के. सिंह ने इस संगोष्ठी में अपने विचार साझा किए। उन्होंने गणमान्य अतिथियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की। साथ में यह भी कहा कि हम अत्यंत सौभाग्यशाली हैं जो हमें औद्योगिक जगत के इन नायकों के इस जमावड़े को देखने का अवसर प्राप्त हुआ, जो वर्षों के अनुभव से एकत्रित अपनी अंतर्दृष्टि को साझा करने जा रहें थे। डॉ. सिंह ने सभा को संबोधित करते हुए कहा, "जब सारे बुद्धिमान लोग एक साथ आते हैं, तब नवाचार होता है।" कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री आर.एन. सिंह, अध्यक्ष, डीवीसी, कोलकाता थे। इन्होंने छात्रों को जीवन में सफलता की परिभाषा को समझाया और बताया कि सफलता तभी प्राप्त की जा सकती है जब आप असफलता का सामना करते हो। मुख्य अतिथि महोदय ने अपने सारगर्भित व्याख्यान में डिजिटल युग में कॉरपोरेट गवर्नेस, नेतृत्व और उद्यमिता की नई सीमाओं को संबोधित किया। उन्होंने संबोधित करते हुए कहा कि डिजिटल युग में, सफल उद्यमी को 'बाहरी' समाधानों की तलाश करनी चाहिए। उन लोगों की पहचान करनी चाहिए जो समाधान के निर्माण में उसकी मदद कर सकते हैं। डिजिटल युग में अतीत के विपरीत, उद्यमी के पास उन लोगों को आकर्षित करने की क्षमता होनी चाहिए जिन्हें वह जरूरी नहीं जानता। अतीत में, दोस्तों या सहकर्मियों का एक समूह शामिल होता था, और यह आगे बढ़ता था । डिजिटल युग में, उद्यमियों को भौगोलिक क्षेत्रों में सहयोग करने की क्षमता रखने की आवश्यकता है। उन्हें एक समाधान पर काम करने के लिए विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को एक साथ लाने में सक्षम होना चाहिए। इस प्रकार, संगठन के उद्देश्य को परिभाषित करना और सभी लोगों को इस उद्देश्य के लिए प्रतिबद्ध करना महत्वपूर्ण हो जाता है जिसके बिना संगठन विघटित होना शुरू हो जाएगा क्योंकि प्रत्येक विशेषज्ञ महसूस करेगा कि वह सबसे अच्छा है । अतीत के विपरीत, आज के उद्यमी को व्यवसाय शुरू करने के लिए अपने स्वयं के वित्तीय संसाधनों के साथ आने की आवश्यकता नहीं है। अभी हाल तक, उद्यमियों का एक बड़ा हिस्सा सफल पेशेवर थे, जो कई वर्षों के रोजगार के बाद उद्यमशीलता की यात्रा शुरू करने के लिए आवश्यक विचार और प्रारंभिक धन के साथ आएंगे।
डिजिटल युग में उद्यमियों को ऐसे समाधानों को देखना चाहिए जो भौगोलिक क्षेत्रों में काम कर सकें। यह स्थानीयकरण के लिए अग्रणी उपयोगकर्ताओं की स्थानीय आवश्यकता को समझने की मांग करता है। पहले उद्यम के पैमाने का धीरे-धीरे विस्तार होता था। डिजिटल युग में पहले दिन से ही बड़े पैमाने पर संबोधित करने के लिए तैयार रहना चाहिए। एक उद्यम स्थापित करने के लिए, जिन विशेषताओं के बारे में उन्होंने बताया कि बताया कि डिजिटल युग में नेतृत्व को संगठन के जीवन चक्र के साथ बदलने की जरूरत है। इसका मतलब है कि अलग-अलग चरणों में नेतृत्व को अलग-अलग शैलियों का प्रदर्शन करना चाहिए।
डिजिटल युग उद्यमियों के लिए एक बड़ा अवसर प्रदान करता है।
तत्पश्चात सभा के अगले वक्ता, बी.आई.टी. सिंदरी के पूर्व छात्र, आई.एस.ई.डी.ई - २०२२ के मुख्य संरक्षक एवं सी.टी.आई.एफ., डेनमार्क के निदेशक, प्राध्यापक श्री रामजी प्रसाद थे। उन्होंने डेनमार्क में नोबल पुरस्कार विजेताओं की संख्या सबसे अधिक होने का कारण बताते हुए नवाचार की महत्ता का बखान किया। प्राध्यापक रामजी प्रसाद ने कहा, "भारत और डेनमार्क को महान बनाने के लिए हम सभी को मिलकर काम करने की जरूरत है।" इस ज्ञान के प्रवाह को आगे बढ़ाते हुए आईआईएम काशीपुर के पूर्व निदेशक, डॉ. गौतम सिन्हा के संबोधन के साथ सत्र आगे बढ़ा। उन्होंने भारतीय युवाओं के साहस और क्षमता की सराहना की और आजकल देश में बढ़ रहे उद्यमिता के कार्यों पर प्रसन्न्ता व्यक्त की।
संगोष्ठी के अगले सम्मानित वक्ता मो. अंजार आलम, निदेशक (वित्त), ई.सी.एल., डब्ल्यू.बी., ने अपने संबोधन में वित्त के महत्व पर विस्तार से बताया और अपनी अभियांत्रिकी की दुनिया से वित्त के विश्व तक की अपनी यात्रा के बारे में सभा को बताया। उन्होंने विभिन्न स्टार्टअप्स का उदाहरण भी दिया, जिन्होंने साबित किया है कि कैसे भारत सरकार ने उभरते स्टार्टअप्स के लिए एक सहायक की भूमिका अदा की और सफलतापूर्वक मदद की है। ज्ञान-मंथन की बात हो, तो अंतरराष्ट्रीय प्राध्यापकों के बिना अधूरा सा लगता है, इसी कड़ी को बढ़ाते हुए, आरहस विश्वविद्यालय, डेनमार्क के प्राध्यापक एंडर्स फ्रेडरिकसन ने एक उद्यमी होने के बुनियादी पहलुओं और एक उद्यमी होने का क्या मतलब है, इस बारे में अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने डेनमार्क में स्टार्टअप्स के सामने आने वाली चुनौतियों और वहाँ स्टार्टअप की संस्कृति को कैसे बढ़ावा दिया जा रहा है, इसके बारे में भी विस्तार से बतलाया।
इस आयोजन के अगले अतिथि वक्ता बी.एस.एल., बोकारो के निदेशक प्रभारी श्री अमरेंदु प्रकाश थे, जिन्होंने डिजिटलीकरण के महत्व और रोजगार के अवसरों के निर्माण में इसकी भूमिका के बारे में बताया और अंततः व्यवसायों की दक्षता में सुधार पर भी अपने विचार व्यक्त किए।
दूसरे सत्र की शुरुआत अमेरिकी निरंतर नवप्रवर्तक उद्यमी, प्राध्यापिका आई.आर. नीली रश्मि प्रसाद के संबोधन के साथ हुई। उन्होंने "उद्यमिता में महिलाओं" के विषय पर अपने विचारों को प्रस्तुत किया। उनका साथ देते हुए डॉ. श्रीविद्या राघवन, पी.आई., एंटरप्रेन्योरशिप सेल, आई.आई.एम. बोध गया, ने भी इसमें अपने विचार साझा किए। चर्चा को आगे बढ़ाते हुए भारतीय सरकार में विज्ञान व तकनीक विभाग के वित्त मामलों के निदेशक, श्री मनोज कुमार ने देश में बढ़ रहे औद्योगिक एवं तकनीकी विकास की बात कही और भारतीय सरकार के विज्ञान व तकनीक विभाग के कार्यों को भी प्रकाशित किया। उद्यमी एवं जे.एन.सी.ए.एस.आर., बैंगलोर, के प्राध्यापक संतोष अंसुमाली ने अकादमिक उद्यमिता के बारे में बात की और बताया कि कैसे शैक्षणिक संस्थान और उद्यमी नवीन रचनाओं के लिए एक साथ जुड़ सकते हैं।
श्री सिद्धि प्राइवेट लिमिटेड के सी.ई.ओ., श्री एस.एन. सिंह ने "सिद्धि प्राइवेट लिमिटेड" की सफलता की कहानी बताई जिसने संस्थान के युवाओं को उद्यमिता में आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया। अंत में श्री रोहित त्रिपाठी, संस्थापक, रांची मॉल, ने उद्यमिता और इसके सकारात्मक प्रभाव का विश्लेषण करते हुए बताया कि कैसे देश के जीवन, अर्थव्यवस्था और बुनियादी ढांचे को उद्यमिता बदल सकती है।
सभी गणमान्य अतिथियों और प्रतिभागियों को संरक्षक श्री डी.के. सिंह, मुख्य संरक्षक श्री रामजी प्रसाद और श्री उमेश प्रसाद साह, आयोजन सचिव, आई.एस.ई.डी.ई. - २०२२ द्वारा धन्यवाद ज्ञापन एवं स्मारिका की प्रस्तुति के साथ आज के सत्र का सफल समापन हुआ।
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