
करवाचौथ का व्रत और प्रतिब्रता नारी की शक्ति पर विशेष
करवाचौथ का व्रत और प्रतिब्रता नारी की शक्ति पर विशेष
संवाददाता बगहा प, च, विजय कुमार शर्मा की कलम से
सम्पादकीय
आज करवाचौथ का पावन वेला है और हर पतिब्रता पत्नी अपन अपनेे पतियों के दीघार्यु होने के निर्जल व्रत है।हमारे यहाँ धर्मपत्नी को अर्धांगिनी यानी आधा अंग माना जाता है और नारी अपने पति को परमेश्वर मानती है।नारीशक्ति के बिना कोई पुरूष कुछ नहीं कर सकता है क्योंकि उसके जीवन में नारी ही शक्ति प्रदाता होती।हर पतिव्रता नारी की एकमात्र इच्छा होती है कि उसका साथ हमेशा बना रहे और अंत में अपने पति के कंधे पर चढ़कर वह परलोक जाय। करवाचौथ का व्रत एक कठिन व्रत होता है जिसे जल्दी कोई पुरूष नहीं कर सकता है।आज सभी नारियों की तमन्ना होती है कि उसका पति पूजा के समय उनके सामने रहे ताकि वह चलनी से उसका दीदार करके उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद ले सके तथा पति उन्हें अपने हाथों पानी पिलाकर व्रत समाप्त कराये।वह नारियाँ बहुत सौभाग्यशाली होती हैं जिनका पति करवा के दिन उनके पास रहता है। करवा चौथ का व्रत नारी का पति के प्रति तथा पुरूष के लिये पत्नी के प्रति अगाध प्रेम समर्पण का प्रतीक माना जाता है।यह सिर्फ हमारे देश में ही ऐसा होता है क्योंकि यहाँ पति पत्नी के बीच जन्म जन्म का रिश्ता माना जाता है।एक समय वह भी था नारियां पति की मृत्यु होने पर उनके साथ ही चिता पर लेटकर पति के साथ ही स्वर्गलोक चली जाती थी। सरकार ने भले ही सती प्रथा पर रोक लगाकर इसे अपराध घोषित कर दिया गया है फिर आज भी पति के साथ सती होने की छुटपुट घटनाएं हो रही हैं।हमारे यहाँ नारी को त्याग तपस्या की प्रतिमूर्ति माना जाता है और बिना पति को भोजन कराये खुद भोजन नहीं करती हैं। पति सेवा को अपना धर्म मानती हैं और सुख दुख में बराबर साथ निभाती हैं।नारी की पूजा साधारण मनुष्य ही नहीं बल्कि देवता भी उनकी पूजा करते हैं और जब दुख मुसीबत आती है तो वही नारी शक्ति उनकी रक्षा करती है।देवों के देव महादेव हो चाहे भगवान विष्णु हो सभी नारी शक्ति के सामने नतमस्तक रहते हैं और जरा सी गलती करने पर सजा पा जाते हैं। ब्रह्मा जी इसके प्रत्यक्ष प्रमाण हैं जिन्हें नारी शक्ति ने श्राप दे दिया था।नारी शक्ति ही आदिशक्ति महाशक्ति परमशक्ति है और हर नारी में उसकी शक्ति समाई हुयी है इसलिये कहते कि जब तक नारी एक साधारण नारी रहती है तबतक वह वेवश होती है लेकिन जब उसका रूप बदलता है तो वह दुर्गा रणचंडी बन जाती है।करवा चौथ व्रत को लेकर कई तरह की कहानियां प्रचलित हैं। लोक मान्यताओं के अनुसार करवा चौथ का व्रत सबसे पहले माता पार्वती जी ने भगवान शिव का अखंड सौभाग्य पाने के लिये किया था।महाभारत काल में द्रौपदी जी इस व्रत को अपने पतियों की सलामती के लिये किया था।जब देवासुर संग्राम चल रहा था तब ब्रह्मा जी के कहने देवताओं की पत्नियों ने पति को विजय दिलाने के लिए किया था।कहते हैं कि जब सीता जी लंका में थी और उनके पति उनके पास नहीं थे तब उन्होंने पति मिलन और पति की सलामती के यह व्रत करके समुद्र पार बैठे भगवान राम को चलनी से देखकर उनकी सलामती के लिये ईश्वर से कामना की थी।करवा व्रत रखने की परम्परा आदिकाल से चल रही है। कुछ लोगों का मानना है कि चन्द्रमा के साथ काला दिखने वाला विष है उसका सगे भाई हैं क्योंकि दोनों की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुयी है।यहीं कारण की चन्द्रमा बिष रूपी अपने सगे भाई को हमेशा हृदय में बिठाये रहता है।दोषमुक्त होने के लियेे ही पत्नियां हमेशा चलनी से ही अपने पति का दर्शन करती हैं और पति उन्हें जल पिलाकर उनके व्रत को लक्ष्य प्रदान करता है।कलियुग में पति पत्नी के रिश्ते कंलकित होने लगे हैं और पत्नी को जन्म जन्म का साथी नहीं बल्कि बेड पार्टनर माना जाने लगा है।कुछ औरतें भी अपने पति को परमेश्वर न मानकर उन्हें रूम पार्टनर मानने लगी है और पति भी उन्हें शारीरिक हवस मिटाने का साधन मानने लगे हैं।करवा चौथ का व्रत पति पत्नी के मध्य श्रद्धा आस्था समर्पण का प्रतीक माना जाता है।
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