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जानिए क्या है हिन्दू संत द्वारा इंदिरा को मिला श्राप

जानिए क्या है हिन्दू संत द्वारा इंदिरा को मिला श्राप

जानिए क्या है हिन्दू संत द्वारा इंदिरा को मिला श्राप

विक्रम भारद्वाज फरीदाबाद रिपोर्टर

सन 1966 में ही एक हिन्दू संत ने इंदिरा और उसके वंशजों श्राप दिया था . भले ही लोग किसी ज्योतिषी , और भविष्यवक्ता की बातों पर विश्वास नहीं करें लेकिन सभी धर्म के लोग ” कर्मफल ” के सिद्धांत को सत्य मानते हैं , जिसके अनुसार किसी भी व्यक्ति द्वारा किये गए अन्याय , झूठ , विश्वासघात और संतों पर किये गए अत्याचार का फल उसकी कई पीढ़ियों को भुगतना पड़ता है . यह एक अटल सत्य है .

चूँकि राहुल इंदिरा का नाती और राजीव का बेटा है ,इस लिए उस संत का श्राप राहुल पर भी असर जरुर करेगा ।यह घटना काफी पुरानी और इंदिरा गांधी के साथ गौहत्या से सम्बंधित है , इसलिए इसे स्पष्ट करने के लिए हमें सन 1966 की घटनाओं और उन महान संत के बारे में कुछ जानकारी देना जरुरी है

कई धर्मों और संस्कृतियों में गाय को पवित्र और पूज्यनीय माना गया है ,

इसी बात को ध्यान में रखते हुए जैसे ही भारत आजाद हुआ , हिंदुओं में गौ वंश की हत्या पर रोक लगाने और देश के सभी ऐसे बूचड़ खानों को बंद कराने की मांग जोर पकड़ने लगी थी . जो सन 1966 में और प्रबल हो गयी थी , जो एक आंदोलन के रूप में बदल गयी , यद्यपि उस आंदोलन में कई हिन्दू संगठन और नेता शामिल थे , परन्तु उनमे संत “ करपात्री ” महाराज अपनी निर्भीकता और ओजस्वी भाषणों के लिए प्रसिद्ध थे .

स्वामी करपात्री (1905 – 1980) भारत के एक महान सन्त, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं राजनेता थे। उनका मूल नाम हर नारायण ओझा था। वे हिन्दू दसनामी परम्परा के भिक्षु थे। दीक्षा के उपरान्त उनका नाम “हरीन्द्रनाथ सरस्वती” था किन्तु वे “करपात्री” नाम से ही प्रसिद्ध थे क्योंकि वे अपने अंजुली का उपयोग खाने के बर्तन की तरह करते थे। उन्होने अखिल भारतीय राम राज्य परिषद नामक राजनैतिक दल भी बनाया था। धर्मशास्त्रों में इनकी अद्वितीय एवं अतुलनीय विद्वता को देखते हुए इन्हें ‘धर्मसम्राट’ की उपाधि प्रदान की गई।

स्वामी करपात्री का जन्म भारत के अवध क्षेत्र उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के भटनी कस्बे में हुआ था। वे विवाहित थे तथा जब सत्रह वर्ष की आयु में घर छोड़कर सन्यास लिया था तब उनकी एक पुत्री भी जन्म ले चुकी थी। वे ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती के शिष्य थे। स्वामी जी की स्मरण शक्ति ‘फोटोग्राफिक’ थी, यह इतनी तीव्र थी कि एक बार कोई चीज पढ़ लेने के वर्षों बाद भी बता देते थे कि ये अमुक पुस्तक के अमुक पृष्ठ पर अमुक रुप में लिखा हुआ है।

उन्होने वाराणसी में “धर्मसंघ” की स्थापना की। उनका अधिकांश जीवन वाराणसी में ही बीता। वे अद्वैत दर्शन के अनुयायी एवं शिक्षक थे। सन् 1948 में उन्होने अखिल भारतीय राम राज्य परिष द की स्थापना की जो परम्परावादी हिन्दू विचारों का राजनैतिक दल था।

अखिल भारतीय राम राज्य परिषद भारत की एक परम्परावादी हिन्दू पार्टी थी। इसकी स्थापना स्वामी करपात्री ने सन् 1948 में की थी। इस दल ने सन् 1952 के प्रथम लोकसभा चुनाव में 3 सीटें प्राप्त की थी। सन् 1952 , 1957 एवम् 1962 के विधान सभा चुनावों में हिन्दी क्षेत्रों (मुख्यत: राजस्थान)में इस दल ने दर्जनों सीटें हासिल की थी।

3-इंदिरा वादे से मुकर गयी

इंदिरा गांधी के लिये उस वकत चुनाव जीतना बहुत मुश्किल था ,करपात्री जी महाराज के आशीर्वाद से इंदिरा गांधी चुनाव जीती । इंदिरा ग़ांधी ने उनसे वादा किया था चुनाव जीतने के बाद गाय के सारे कत्ल खाने बंद हो जायेगें . जो अंग्रेजो के समय से चल रहे हैं .लेकिन इंदिरा गांधी मुसलमानों और कम्यूनिस्टों के दवाब में आकर अपने वादे से मुकर गयी थी .

4-गौ हत्या निषेध आंदोलन

और जब तत्कालीन प्रधानमंत्री ने संतों इस मांग को ठुकरा दिया , जिसमे सविधान में संशोधन करके देश में गौ वंश की हत्या पर पाबन्दी लगाने की मांग की गयी थी ,तो संतों ने 7 नवम्बर 1966 को संसद भवन के सामने धरना शुरू कर दिया , हिन्दू पंचांग के अनुसार उस दिन विक्रमी संवत 2012 कार्तिक शुक्ल की अष्टमी थी , जिसे ” गोपाष्टमी ” भी कहा जाता है .

इस धरने में मुख्य संतों के नाम इस प्रकार हैं , शंकराचार्य निरंजन देव तीर्थ , स्वामी करपात्री महाराज और रामचन्द्र वीर है . राम चन्द्र वीर तो आमरण अनशन पर बैठ गए थे , लेकिन इंदिरा गांधी ने उन निहत्ते और शांत संतों पर पुलिस के द्वारा गोली चलवा दी , जिस से कई साधू मारे गए . इस ह्त्या कांड से क्षुब्ध होकर तत्कालीन गृहमंत्री ” गुलजारी लाल नंदा ” ने अपना त्याग पत्र दे दिया , और इस कांड के लिए खुद को सरकार को जिम्मेदार बताया था . लेकिन संत ” राम चन्द्र वीर ” अनशन पर डटे रहे जो 166 दिनों के बाद उनकी मौत के बाद ही समाप्त हुआ था . राम चन्द्र वीर के इस अद्वितीय और इतने लम्बे अनशन ने दुनिया के सभी रिकार्ड तोड़ दिए है . यह दुनिया की पहली ऎसी घटना थी जिसमे एक हिन्दू संत ने गौ माता की रक्षा के लिए 166 दिनों तक भूखे रह कर अपना बलिदान दिया ।

लेकिन खुद को निष्पक्ष बताने वाले किसी भी अखबार ने इंदिरा के दर से साधुओं पर गोली चलने और रामचंद्र वीर के बलिदान की खबर छापने की हिम्मत नहीं दिखायी , सिर्फ मासिक पत्रिका “ आर्यावर्त ” और “ केसरी ” ने इस खबर को छापा था . और कुछ दिन बाद गोरखपुर से छपने वाली मासिक पत्रिका “ कल्याण ” ने ” गौ अंक में एक विशेषांक ” प्रकाशित किया था , जिसमे विस्तार सहित यह घटना दी गयी थी . और जब मीडिया वालों ने अपने मुहों पर ताले लगा लिए थे तो करपात्री जी ने कल्याण के उसी अंक में इंदिरा को सम्बोधित करके कहा था “यद्यपि तूने निर्दोष साधुओं की हत्या करवाई है . फिर भी मुझे इसका दुःख नही है . लेकिन तूने गौ हत्यारों को गायों की हत्या करने की छूट देकर जो पाप किया है वह क्षमा के योग्य नहीं है , इसलिये मैं आज तुझे श्राप देता हूँ कि

” गोपाष्टमी ” के दिन ही तेरे वंश का नाश होगा ”

जब करपात्री जी ने यह श्राप दिया था तो वहाँ “ प्रभुदत्त ब्रह्मचारी “ भी मौजूद थे , करपात्री जी ने जो भी कहा था वह आगे चल कर अक्षरशः सत्य हो गया . इंदिरा का का वंश गोपाष्टमी के दिन ही नाश हो गया , सबुत के लिए इन मौतों की तिथियों पर गौर करिये।

उस दिन कर पात्री जी ने उपस्थित लोगों के सामने गरज कर कहा था .कि लोग भले इस घटना को भूल जाएँ लेकिन मैं इसे कभी नहीं भूल सकता . गौ हत्यारे के वंशज नहीं बचेंगे चाहे वह आकाश में हो या पाताल में हों , और चाहे घर में हो या बाहर हो यह श्राप इंदिरा के वंशजों का पीछा करता रहेगा , फिर करपात्री जी ने राम चरित मानस की यह चौपाई लोगों को सुनायी ,

“संत अवज्ञा करि फल ऐसा, जारहि नगर अनाथ करि जैसा “

राम चरित मानस – लंका काण्ड

इस चौपाई में उस घटना का उल्लेख है जब हनुमान जी ने लंका नगरी को जला दिया था ,और लंका के निवासी एक दूसरे को यही कह रहे थे कि एक संत के द्वारा समझाने पर भी उसकी बात की अवज्ञा करने पर ऐसा ही फल मिलता है . कि आज हमारी नगरी एक अनाथ के घर की तरह जल रही है , और कोई उसे बचाने वाला नहीं है ,

करपात्री जी जिस समय लोगों के सामने यह बात शेर की तरह गरज कर कह रहे थे तो लोग तालियां बजा रहे थे 

साथ ही इस बात पर गौर करिये कि इंदिरा और उसके दौनों बेटे गोपाष्टमी के दिन ही अकाल मौत क्यों मरे थे ,फिर बताइये कि यह मात्र संयोग ही था , या इसके पीछे एक गौभक्त संत का ऐसा श्राप है जो इंदिरा के वंशजों का पीढ़ी दर पीढ़ी नाश करता रहेगा . इंदिरा के वंश मे राहुल एकमात्र ऐसा व्यक्ति है जो हिन्दू संतों से नफ़रत करता है . गायों की हत्या करने वालों से प्रेम करता है . इसलिए श्राप का अगला निशाना राहुल ही होने वाला है . कांग्रेसी अपनी पूरी ताकत लगा कर देख लें . फिर भी वही होगा जो करपात्री जी ने सन 1966 में कह दिया था , 
फिर भी हिंदुओं को हाथ पर हाथ रख कर बैठने की जगह करपात्री जी के कथन को सच साबित करने के लिए अभी और आज से ही प्रयास शुरू कर देना चाहिए।    

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