
सर्वशिक्षा अभियान फेल महज कागजो तक ही सिमित
सर्वशिक्षा अभियान फेल महज कागजो तक ही सिमित रह गया है
रिपोर्ट राकेश द्विवेदी
संतकबीरनगर। सरकार द्वारा चलाये जा रहे सर्वशिक्षा अभियान और बालश्रम कानूनों के बावजूद भी शहर व ग्रामीण क्षेत्रों में बाल श्रमिक ताबड़तोड़ मेहनत करके दो जून की रोटी कमाने को विवश हैं। और इसे रोकने के लिए बनाये गए नियम कायदे ताख पर रखे नजर आते है। हालात यह है कि शहर में तमाम होटलों, ढाबों, दुकानों, कारखानों, ईंट भट्ठों, के अलावा जोखिम भरे काम करते हुए नाबालिग श्रमिकों को देखा जा सकता है। यह सब देखते हुए भी प्रशासन के किसी भी अधिकारी व कर्मचारी को शायद फुर्सत नहीं है इसे रोकने के लिए। केंद्र व प्रदेश की सरकारों ने सभी को शिक्षित बनाने के उद्देश्य से स्कूल चलो अभियान, सर्व शिक्षा अभियान सहित अन्य कार्यक्रम इस इरादे से चलाए है कि शिक्षा की ओर आकर्षित होकर हर एक बच्चा पढ़ने के लिए आगे आए और उनके अभिभावकों में भी इसके लिए जागरूकता पैदा की जाय, इसके लिए रैलियां निकालना, मिड डे मिल, ड्रेस वितरण, निःशुल्क पाठ्यपुस्तकें और यहाँ तक कि तक फीस माफ करने सहित तमाम कर्यक्रम भी पूरे साल चलते रहते हैं। लेकिन देखा गया है कि इसका असर उतना कारगर साबित नही हो पाता। सरकार जितना इन अभियानों पर पैसा खर्च करती है पर प्रशासन पर कोई असर नही पड़ रहा है। शहर ग्रामीण क्षेत्रों में बाल श्रमिकों की संख्या बढ़ती जा रही है। यह इस ओर इशारा कर रहा है कि सरकार द्वारा चलाया गया सर्व शिक्षा अभियान महज कागजी साबित हो रही है। अगर जनपद क्षेत्रों का जायजा लिया जाय तो भारी तादात में पढ़ने की उम्र वाले बच्चें गलियों व सड़को पर कबाड़ बीनते दिखाई देते हैं। इतना ही नहीं वर्कशॉप, ईट भट्टे, जोखिम वाले कारखाने, दुकानों, होटलों और यहाँ तक कि मजदूरी करते हुए बच्चे हर किसी की निगाह में रोज आते रहते है।
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