
मन मैला तन ऊजरा बगुला कपटी अंग, तासों तो कौवा भला तन-मन एकहि रंग
संवाददाता राकेश द्विवेदी
मन मैला तन ऊजरा बगुला कपटी अंग,
तासों तो कौवा भला तन-मन एकहि रंग
पंद्रह वर्षों के सपा-बसपा के अंध-शासन और जनता की गाढ़ी कमाई की बंदरबाँट कर अपना खजाना भरने वाले हुल्लड़ी शासन व्यवस्था की आदत डाल चुके कुछ धूर्तों को भाजपा सरकार की सुशासन की तरफ बढ़ते कदम फूटी आँख नहीं सुहा रहे। पंद्रह वर्षों के जंगलराज पर योगी जी के सफल नेतृत्व में भाजपा सरकार और श्री सुनील बंसल जी जैसे निःस्वार्थ कर्मयोगी के सख्त पहरे ने एकबारगी लगाम लगा दिया है जिससे तमाम लोगों की बौखलाहट रह-रह कर दिखाई पड़ रही है। राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमित शाह जी के हनुमान संगठन मनीषी श्री सुनील बंसल जी तमाम धूर्त प्रवृत्ति के नटवरलालों की राह में सबसे बड़ा रोड़ा बन गए हैं और इसलिए उनके खिलाफ तमाम मनगढ़ंत आरोप लगाकर भाजपा संगठन और सरकार को विचलित कर ये धूर्त अपना उल्लू सीधा करने में जुट गए हैं।
इन्होंने ये सोचा था कि सपा-बसपा के अंध-शासन के परम्परागत ढर्रे पर ये मूर्ख इस शासन में भी अपनी गन्दी सोच और लालची एवं राष्ट्रविरोधी प्रवृत्ति से अपना उल्लू सीधा करने में कामयाब होंगे, इसी के अनुरूप इन्होंने पहले तो इधर-उधर हाथ पैर मारा लेकिन केंद्रीय नेतृत्व के सख्त पहरेदार श्री सुनील बंसल जी के सामने इनकी दाल नहीं गलने पाई जिस वजह से अब बौखलाहट में ये धूर्त उनके खिलाफ तमाम प्रकार के अनर्गल प्रलाप कर उनकी छवि को धूमिल करने का प्रयास कर रहे हैं। एक सेवानिवृत्त अधिकारी सूर्य प्रताप सिंह की श्री सुनील बंसल जी के खिलाफ किये जा रहे अनर्गल प्रलाप को इसी परिप्रेक्ष्य में समझे जाने की आवश्यकता है। यह व्यक्ति अपने सेवाकाल में भी अपने अनुशासनहीन कार्यशैली की वजह से चर्चा में रहा है और छद्म ईमानदारी का लबादा ओढ़कर अपना उल्लू सीधा करने का निरर्थक प्रयास कर रहा है। इस व्यक्ति को ना ही भाजपा और संघ की कार्यशैली का अता पता है और ना ही यह व्यक्ति श्री सुनील बंसल जी जैसे कर्ममनीषी की कर्मनिष्ठा और राष्ट्रभक्ति के ताप को समझता है।
श्री सुनील बंसल जी वह व्यक्ति हैं जिनके नेतृत्व में खंड खंड में बँटा ओजहीन भाजपा संगठन एक ऐतिहासिक जनादेश को प्राप्त करने में अन्ततः सफल हुआ और जिनकी सख्त पहरेदारी और सुशासन के प्रति प्रतिबद्धता के चलते सूर्य प्रताप सिंह जैसे तमाम पाखंडियों के समाज और राष्ट्रविरोधी कुत्सित प्रयास धूल चाटते नजर आ रहे हैं।
इन्हें इस सामान्य तथ्य की भी जानकारी नहीं कि सूरज के ऊपर थूकने के प्रयास करने से थूक खुद के ही ऊपर पड़ेगी
0 Response to "मन मैला तन ऊजरा बगुला कपटी अंग, तासों तो कौवा भला तन-मन एकहि रंग"
एक टिप्पणी भेजें