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कंगाल किसान और मालामाल बीज कंपनियां

कंगाल किसान और मालामाल बीज कंपनियां

कंगाल किसान और मालामाल बीज कंपनियां

बिजय कुमार शर्मा की कलम से

आखिर कब तक किसानों की दुर्दशा पर चुप रहेगा यह देश?
आखिर इस देश में किसान होना पाप है क्या?
आखिर इन मासूम किसानों के मौत का जिम्मेदार कौन है?

इन्ही सब सवालो के साथ आज का आलेख उन किसानों के नाम करता हु,जिन्होंने अपनी जिंदगी की बलि सिर्फ इसलिए चढ़ा गए क्योकि ओ किसान थे।

ऐसे तो हमारा देश भारत किसानों का देश कहा जाता है।इसे आप हकीकत मत मानियेगा,ऐ सिर्फ कहने की सैद्धान्तिक बाते है,व्याहारिक नही।इसका जमीनी हकीकत से कोई वास्ता नही।

हां इस देश में किसान ज्यादा है मगर यह देश किसानों का नही यह देश पूंजीपतियों और उन नेताओं का है जो अपने दम पर देश को चलाते है।

और जो चाहते वही करते है किसान तो सिर्फ इनके लिए कठपुतली मात्र है और सिर्फ वोट बैंक।

पूंजीपति इन्हें अपना डुप्लीकेट माल जो की बीज खाद इत्यादि बेचकर बेतहासा पैसा कमाती है तो नेता इनकी उम्मीद और आशा बेचकर वोट प्राप्त करते है।

हर कोई इनके भावनाओ के साथ सौदा ही करता है।
और जब तक किसान की उम्मीदें उसके सांसो के साथ,साथ देती है तब तक किसान भी इन सौदों का शिकार होता रहता है और जब उम्मीदे अपने अंतिम अवस्था में पहुचती है तो साँस और उम्मीदे एक साथ अपना दम तोड़ देती है।

ऐसा मैं इसलिये कह रहा हु की इस बार फिर मक्का बीज की बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने किसानों को ज्यादा उपज देने के लालच में ठगने का काम किया है और लाखों किसानों को भुखमरी और और मौत के हालात तक पहुँचा दिया है।

इसे आप ठगना भी नही कह सकते ऐ सीधे सीधे मासूम किसानों की हत्या है जिसके जिम्मेवार ऐ बहुराष्ट्रीय कंपनियां है और इनको सरंक्षण देने वाले सरकार भी।

आपको बता दू की बिहार के सभी जिलों में अंधिकाश किसानो के  खेतों में मक्का के फसल में इस बार दाना नही आये  है ।

जिससे सभी किसान अपने फसलों को अपने हाथों से बर्बाद कर रहे है।

साहब जब आप इनको अपने ही हाथों से उपजाये फसलों को बर्बाद करते देखेंगे तो आपके आँखों में आंसू आ जायेंगे की जिस तरह कोई अपने बच्चे को पालता पोशता है
और जब वह सयान होता है और जब उससे कुछ पाने की उम्मीद होती है तो कैसे अपने ही हाथों से उसका गला घोट देता है।

आपको जानकारी दे दू की बिहार के सिर्फ पूर्णिया जिले के 13,482 किसानों  के 9,836 हेक्टेयर खेतो के मक्का के फसलों में दाना नही आये है।
ऐ हमारा डाटा नही बल्कि सरकार ने ही जियो टैगिंग कर इतने हेक्टेयर में हुई क्षति को चिन्हित किया है।

और लगभग 12 करोड़ रूपये की मुआवजा की बात कही है।
आखिर ऐ कौन कानून है कि गलती करे बीज कंपनियां और सजा भुगते गरीब किसान।और सरकार गरीब किसानों के टैक्स रूपी पैसे देकर कंपनियों के गलती का कीमत चुकाए।

आखिर इन मुआवजी की कीमत सरकार उन बीज कंपनियों से क्यों नहीं वसूलती है?
क्यों न सरकार न इन बीज और खाद बेचने वालों पर जाँच करवाती है?

अभी हाल ही में शिवहर जिले के कई किसानों ने फसल की बर्बादी देखकर आत्महत्या कर ली।
ऐ अलग बात है कि इन किसानों की दुर्दशा और दर्दनाक मौत की खबरें अखबारो और मीडिया की सुर्खियां नही बन पाती।

क्योकि ऐ न नेता है और न अभिनेता और न ऐ नीरव मोदी है।ऐ तो मामूली किसान है साहब जिनसे मामूली 50 हजार या 1लाख कर्ज चुकवाने के लिए बैंक जमींन तक नीलाम करवा देती है।

मुज़फ़्फ़रपुर जिले के भी अंधिकाश किसानो का यही हाल है।

हर जगह गरीब किसान अपने बर्बाद फसल को लेकर परेशान और चिंतित है मगर इनकी कोई सुनने वाला नही।
हमने जब इस समस्या के मूल कारणों को जानने की कोशिश की तो पता चला की अधिकांश बीज कंपनियां किसानों को एक्सपायरी डेट वाली बीज थमा देती है और बची खुची कंपनियां इन एक्सपायरी वाले बीजो को फिर से रिपैंकिंग कर किसानों को थमा देती है।
सरे आम इन कंपनियों द्वारा किसानों को डी माल थमा दिया जाता है।

और ऐसे भी हमारे देश में ज्यादातर किसानों को अनपढ़,जाहिल और गवार समझा जाता है।
और होते भी है अगर ऐ किसान जाहिल बेबस लाचार नही होते तो इस तरह इन कंपनियों के जाल में नही फसते साहब।

मगर दुर्भाग्य है कि हर वर्ष कंपनियों द्वारा इन मासूम किसानों की अप्रत्यक्ष हत्या की जाती है और सरकार न कभी इन कंपनियों कोई गाइडलाइन देती है और न कोई करवाई करती है।

क्या सिर्फ मुवावजा दे देने से किसानों की समस्या का हल हो जाएगा?
और मुआवजा भी उन गरीब किसानों तक तो नही ही पहुच पाती है जिन्हें वास्तव में जरुरत होती है।

बिहार के किसानों का दुर्भाग्य तो इतना है साहब है कि इसी बिहार के मोतिहारी जिले के निवासी और सांसद और खुद को किसान कहने वाले श्री राधामोहन सिंह देश के केन्द्रीय कृषि मंत्री है।

मगर अफ़सोस की अभी तक माननीय मंत्री महोदय ने इस मामले पर संज्ञान तक नही लिया।

मगर कुछ सवाल है जो आपके लिए छोड़कर जा रहा हु।
जब मुँह में आप अन्न का दाना डालते रहे तो एक पल के लिए भी इन किसानों को याद करते हुए सोचियेगा।

क्या ऐ कंपनियां इन मासूम और निर्दोष किसानों के बर्बादी और मौत का जिम्मेवार नही है?

क्या सरकार को इन कंपनियों पर करवाई नही करनी चाहिए?

आखिर कब तक किसानों के लाश पर बहुराष्ट्रीय कंपनियां मालामाल होती रहेगी।

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