
लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाला आज का चौथा स्तम्भ ...
लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाला आज का चौथा स्तम्भ ...
पत्रकार
पत्रकारिता को शर्मसार कर देने वाला आज का चौथा स्तंभ…
मौजूदा समय मे पत्रकारिता सत्ता के पक्ष व विपक्ष मे जिस तरह से लामबंद है उससे जनपक्षीय पत्रकारिता बहुत अहित हुआ है। इसका जिम्मेदार कौन है यह तो कहना कठिन है, लेकिन इसकी जिम्मेदारी आज के वृत्ति पत्रकार को ही लेनी चाहिए चूंकि आज के वृत्तिय पत्रकारिता युग मे मोम्बत्ती जलाकर भी व्रती पत्रकार को ढूंढना बड़ा कठिन है। हमारे बुजुर्गों द्वारा पत्रकारिता को जिस प्रकार से परिभाषित किया गया था उसके उलट आज के पत्रकार पत्रकारिता के क्षेत्र मे अपना योगदान दे रहे है। हम अपने चारों ओर से इस बात का अनुभव कर सकते है कि आधुनिकता हमारे ऊपर किस कदर हावी है और यह कहना गलत नही होगा कि आज के वृत्तिय पत्रकार इसी आधुनिकता के शिकार हुए है, जिसका उद्देश्य मानवता व राष्ट्र विकास से हटकर दिखावा, प्रतिष्ठा व पैसा मात्र भर ही रह गया है।
अल्पकालिक पत्रकार के रुप योगदान देने वाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने पूर्णकालिक एक बात कही है कि “एक पत्रकार को सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम् तीनो आर्दशों को अपने संवाद मे चरितार्थ करना चाहिए”, जबकि आज के पत्रकार का संवाद एक कमरे मे कैमरें के सामने इन तीनों आदर्शों के विपरीत होता है। जिस प्रकार से एक व्रती पत्रकारिता वृत्ति पत्रकारिता की ओर अग्रसर हो रहा है ऐसा लगता है कि वह दिन ज्यादा दूर नही जब कथित रुप से पत्रकारिता को लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रुप मे मिला हुआ दर्जा भी विलुप्त हो जाए बहोत ही दु:खद है मित्रो ।
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