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झारखंड चुनाव 2019:  जब भाजपा ने पहले वित्त मंत्री का भी काट दिया टिकट

झारखंड चुनाव 2019: जब भाजपा ने पहले वित्त मंत्री का भी काट दिया टिकट

झारखंड के पहले वित्त मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता मृगेंद्र प्रताप सिहं का जब साल 2005 के विधानसभा चुनाव में भाजपा से टिकट कटा था, तब वह तड़प उठे थे। पार्टी के इस फैसले से अंदर से वह बुरी तरह टूट गए थे। उन्हें बड़ा आघात लगा था। 1995 और 2000 के विधानसभा चुनाव में वह भाजपा के टिकट से लगातार जीतकर आए।
टिकट कटने के बाद भाजपा के किसी बड़े नेता ने न उन्हें सांत्वना दी और ना ही कोई आश्वासन दिया। आहत मृगेंद्र प्रताप सिहं के जख्म पर राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद ने मरहम लगाया। उन्हें अपनी पार्टी से लड़ने का न्योता दिया और उनका नामांकन भी करवा दिया। इसी बीच मृगेंद्र बाबू गंभीर रूप से बीमार पड़ गए। उनकी तबीयत लगातार बिगड़ती चली गई और अंतत: वह इस दुनिया से चल बसे। यह हादसा उनके परिजनों में आज भी टीस पैदा करता है। उन दिनों किसी राष्ट्रीय दल के किसी स्थापित और बड़े नेता का टिकट कटना बड़ी घटना मानी जाती थी। पार्टी के अंदर और बाहर इसकी व्यापक चर्चा हुई।
मृगेंद्र बाबू जमशेदपुर पश्चिमी विधानसभा क्षेत्र से 1995 और 2000 का चुनाव लड़े और जीते थे। 1995 में उन्होंने जनता दल के मोहम्मद हसन रिजवी को हराया था। झारखंड के पहले वित्त मंत्री बनने का उन्हें गौरव प्राप्त था ही, छह महीने तक उन्होंने विधानसभा के अध्यक्ष पद की भी कुर्सी संभाली थी। अध्यक्ष पद से इंदर सिंह नामधारी के इस्तीफा देने के बाद उन्हें इस पद बिठाया गया था। बतौर अध्यक्ष उन्होंने झारखंड विधानसभा के तीन विधायकों को दसवीं अनुसूची का उल्लंघन करने का दोषी मानते हुए सदस्यता खारिज कर दी थी।
भाजपा की दलीय निष्ठा से जुड़े मृगेंद्र बाबू जब तक वित्त मंत्री रहे, संगठन के सच्चे सिपाही के रूप में काम करते रहे। साहित्य अनुरागी मृगेंद्र बाबू से जो एक बार मिलता था, उनका बन जाता था। वह बहुत उच्च शिक्षित नहीं थे, लेकिन साहित्य लेखन में उनकी विशेष रुचि थी। कविताओं की रचना के माध्यम से वह अपने मनोभाव को व्यक्त करते थे। मृगेंद्र प्रताप सिंह के पुत्र अभय सिंह भाजपा के नेता हैं। जमशेदपुर में जब उन्हें संगठन का पद दिया जा रहा था, तब मृगेंद्र बाबू ने हस्तक्षेप कर मना करवा दिया था। उन्होंने कहा था कि जब पिता संगठन और सरकार में पद पर हैं तब बेटे को संगठन में लाने का कोई औचित्य नहीं है? इस तरह मृगेन्द्र बाबू ने उसूल की मिसाल कायम की थी। राजनीति में वह वंशवाद के विरोधी थे। झारखंड में मूल्यों की राजनीति करनेवालों में मृगेंद्र प्रताप सिंह आज भी श्रद्धा के साथ याद किए जाते हैं।
 

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