
गढ़वा विधानसभा क्षेत्र में बिजली, पानी और सड़क के सवालों में फंसे योद्धा
शुक्रवार, 15 नवंबर 2019
गढ़वा विधानसभा राजनीतिक रूप से दिलचस्प क्षेत्र है। भाजपा ने यहां अपने विधायक सत्येंद्र नाथ तिवारी पर ही दांव खेला है जबकि झामुमो के मिथिलेश ठाकुर और झाविमो के सूरज कुमार गुप्ता की भी मजबूत दावेदारी है। इस क्षेत्र में बिजली, पानी और सड़क के सवाल अहम हैं। इन सवालों से प्रत्याशियों को जूझना पड़ रहा है। यहां चल रहे संघर्ष पर प्रस्तुत है ओमप्रकाश पाठक की रिपोर्ट।
वर्तमान विधायक गिरिनाथ सिंह के राजद छोड़कर भाजपा में शामिल होने के बाद गढ़वा विधानसभा क्षेत्र का राजनीतिक समीकरण बदला-बदला सा है। भाजपा इस बार यहां अपना किला बचाने की लड़ाई लड़ रही है। वहीं कांग्रेस-झामुमो का गठजोड़ इस पर कब्जे की पुरजोर कोशिश में है। झाविमो यहां लड़ाई को त्रिकोणीय बना रहा है।
बाईपास और बिजली की समस्या का समाधान न तो पूर्व विधायक कर सके और न ही वर्तमान विधायक। एनएच 75 और एनएच 343 के शहर के बीचोबीच होकर गुजरने के कारण वाहनों का अत्यधिक दबाव रहता है। उक्त कारण शहरी क्षेत्र के लोग जहां स्वास्थ्य संबंधी समस्या झेल रहे हैं वहीं जाम की समस्या से भी परेशान रहते हैं। उसके अलावा अबतक विधानसभा क्षेत्र के लोगों को समुचित बिजली मुहैया नहीं कराई जा सकी है। बाईपास के अलावा बिजली और पेयजलापूर्ति की समस्या दूर करने की मांग कई बार उठी पर नतीजा वही ढाक के तीन पात बनकर रह गया।
10 साल निवर्तमान विधायक सत्येंद्रनाथ तिवारी, वहीं पूर्व विधायक गिरिनाथ सिंह और उनके पिता गोपीनाथ सिंह ने 25 साल विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है। इस नाते जनता भी सवाल उनसे ही कर रही है। इसके अलावा एक ओर तो शहरी जलापूर्ति शुरू नहीं हो सकी और दूसरी तरफ प्रतापपुर के मौनाहा के ग्रामीणों को फ्लोराइड युक्त पानी से मुक्ति नहीं मिल पाई है। राजद छोड़ गिरिनाथ के भाजपा में शामिल होने के बाद लगा चुनावी समीकरण बदल सकता है। दोनों ही टिकट के प्रबल दावेदार थे। लेकिन पार्टी ने विधायक सत्येन्द्रनाथ को टिकट देकर उनपर भरोसा जताया है। अब गिरिनाथ का अगला कदम क्या होगा यह देखना दिलचस्प होगा।
भाजपा ने सत्येंद्रनाथ तिवारी, झामुमो ने मिथिलेश ठाकुर और झाविमो ने सूरज कुमार गुप्ता को उम्मीदवार बनाया है।
लोस चुनाव में भाजपा आगे
गढ़वा पलामू लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। पिछले लोकसभा चुनाव में इस विधानसभा क्षेत्र में भाजपा को राजद पर लगभग 79 हजार मतों की बढ़त मिली थी।
विशेषता-
एकीकृत बिहार के समय से ही गढ़वा राजनीतिक रूप से काफी अहम विधानसभा क्षेत्र माना जाता रहा है। यह एक कृषिप्रधान क्षेत्र है। सूखाग्रस्त क्षेत्र होने के कारण यहां के किसान त्रस्त रहते हैं। अब तक सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने के कारण उन्हें वर्षा पर ही निर्भर रहना पड़ता है। गढ़वा शहर में प्राचीन काल का गढ़देवी मंदिर है, जहां पूजा-अर्चना के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
राजनीतिक इतिहास
गढ़वा अनारक्षित सीट है। गिरिनाथ सिंह और उनके पिता गोपीनाथ सिंह का यहां 25 साल तक एकछत्र राज रहा। वर्ष 2009 में झाविमो के सत्येंद्रनाथ तिवारी ने गिरिनाथ को हराकर यह सिलसिला तोड़ा। 1977 में जनता पार्टी के विनोद नारायण दीक्षित विधायक बने। 1980 में कांग्रेस के युगल किशोर पांडेय चुनाव जीते। 1985 में गोपीनाथ सिंह ने उन्हें हराया। 1990 में भी गोपीनाथ ने जीत हासिल की। गिरिनार्थ ंसह 1993 में उपचुनाव लड़े और जीते। 1995 में भी दूबे को उन्होंने हराया। 2000 में राजद के टिकट पर वह चुनाव जीते। 2005 में उन्होंने जदयू के सिराज अहमद को हराया था।
वर्तमान विधायक गिरिनाथ सिंह के राजद छोड़कर भाजपा में शामिल होने के बाद गढ़वा विधानसभा क्षेत्र का राजनीतिक समीकरण बदला-बदला सा है। भाजपा इस बार यहां अपना किला बचाने की लड़ाई लड़ रही है। वहीं कांग्रेस-झामुमो का गठजोड़ इस पर कब्जे की पुरजोर कोशिश में है। झाविमो यहां लड़ाई को त्रिकोणीय बना रहा है।
बाईपास और बिजली की समस्या का समाधान न तो पूर्व विधायक कर सके और न ही वर्तमान विधायक। एनएच 75 और एनएच 343 के शहर के बीचोबीच होकर गुजरने के कारण वाहनों का अत्यधिक दबाव रहता है। उक्त कारण शहरी क्षेत्र के लोग जहां स्वास्थ्य संबंधी समस्या झेल रहे हैं वहीं जाम की समस्या से भी परेशान रहते हैं। उसके अलावा अबतक विधानसभा क्षेत्र के लोगों को समुचित बिजली मुहैया नहीं कराई जा सकी है। बाईपास के अलावा बिजली और पेयजलापूर्ति की समस्या दूर करने की मांग कई बार उठी पर नतीजा वही ढाक के तीन पात बनकर रह गया।
10 साल निवर्तमान विधायक सत्येंद्रनाथ तिवारी, वहीं पूर्व विधायक गिरिनाथ सिंह और उनके पिता गोपीनाथ सिंह ने 25 साल विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है। इस नाते जनता भी सवाल उनसे ही कर रही है। इसके अलावा एक ओर तो शहरी जलापूर्ति शुरू नहीं हो सकी और दूसरी तरफ प्रतापपुर के मौनाहा के ग्रामीणों को फ्लोराइड युक्त पानी से मुक्ति नहीं मिल पाई है। राजद छोड़ गिरिनाथ के भाजपा में शामिल होने के बाद लगा चुनावी समीकरण बदल सकता है। दोनों ही टिकट के प्रबल दावेदार थे। लेकिन पार्टी ने विधायक सत्येन्द्रनाथ को टिकट देकर उनपर भरोसा जताया है। अब गिरिनाथ का अगला कदम क्या होगा यह देखना दिलचस्प होगा।
दावे-प्रतिदावे-
क्षेत्र को भयमुक्त बनाकर विकास की लंबी लकीर खींची है। क्षेत्र के सभी प्रखंडों और गांवों में चहुंमुखी विकास हुआ है। क्षेत्र में पांच सौ किलोमीटर से अधिक नई सड़कों का जाल बिछाया गया है। क्षेत्र को भयमुक्त बनाकर गुलामी की मानसिकता में जकड़े लोगों को मानसिक आजादी दिलाने का काम किया है। -सत्येन्द्रनाथ तिवारी, भाजपा विधायक
वर्तमान विधायक के कार्यकाल में कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं हुआ है। कोयल नदी से गढ़वा शहरी क्षेत्र में पानी पहुंचाने की योजना के अलावा कृषि महाविद्यालय में पढ़ाई, बाईपास सड़क का निर्माण सहित अन्य योजनाएं जस की तस पड़ी हैं। क्षेत्र की कई सड़कों की स्थिति भी जर्जर है। -
गिरिनाथ सिंह, 2014 में निकटतम प्रतिद्वंद्वी
प्रत्याशी घोषितभाजपा ने सत्येंद्रनाथ तिवारी, झामुमो ने मिथिलेश ठाकुर और झाविमो ने सूरज कुमार गुप्ता को उम्मीदवार बनाया है।
लोस चुनाव में भाजपा आगे
गढ़वा पलामू लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। पिछले लोकसभा चुनाव में इस विधानसभा क्षेत्र में भाजपा को राजद पर लगभग 79 हजार मतों की बढ़त मिली थी।
विशेषता-
एकीकृत बिहार के समय से ही गढ़वा राजनीतिक रूप से काफी अहम विधानसभा क्षेत्र माना जाता रहा है। यह एक कृषिप्रधान क्षेत्र है। सूखाग्रस्त क्षेत्र होने के कारण यहां के किसान त्रस्त रहते हैं। अब तक सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने के कारण उन्हें वर्षा पर ही निर्भर रहना पड़ता है। गढ़वा शहर में प्राचीन काल का गढ़देवी मंदिर है, जहां पूजा-अर्चना के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
राजनीतिक इतिहास
गढ़वा अनारक्षित सीट है। गिरिनाथ सिंह और उनके पिता गोपीनाथ सिंह का यहां 25 साल तक एकछत्र राज रहा। वर्ष 2009 में झाविमो के सत्येंद्रनाथ तिवारी ने गिरिनाथ को हराकर यह सिलसिला तोड़ा। 1977 में जनता पार्टी के विनोद नारायण दीक्षित विधायक बने। 1980 में कांग्रेस के युगल किशोर पांडेय चुनाव जीते। 1985 में गोपीनाथ सिंह ने उन्हें हराया। 1990 में भी गोपीनाथ ने जीत हासिल की। गिरिनार्थ ंसह 1993 में उपचुनाव लड़े और जीते। 1995 में भी दूबे को उन्होंने हराया। 2000 में राजद के टिकट पर वह चुनाव जीते। 2005 में उन्होंने जदयू के सिराज अहमद को हराया था।